13 मार्च, 2023

रतजगा पाखी - -

कोहरे में ढकी रहती है सदा जीवन की परिभाषा,
कभी रहस्यमय चक्र सी, कभी महज सरल रेखा,

सफ़र में आते हैं, असंख्य यति चिन्हों के स्टेशन,
पल भर का मेल बंधन अंतिम गंत्वय है अनदेखा,

बूढ़े वट की शाख़ों में है पक्षियों का सांझ समागम,
कभी मीठा कभी बेसुरा, सकल जीवन एक सरीखा,

प्रथम अक्षर से आरंभ, पूर्ण विराम तक निरंतरता,
स्मित अधर नीर भरे नैन जीने का है यही सलीक़ा,

शून्य हो कर भी आकाश समेटे आलोकमय दुनिया,
मुक्त सीना हो सदा, हम ने ताउम्र बस इतना सीखा,

कोई ख़ुश है सिमित चाह से, कोई उम्र भर रतजगा,
राजा हो या रंक हर एक का है अपना अलग तरीक़ा,
* *
- - शांतनु सान्याल
 

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 14 मार्च 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. शून्य हो कर भी आकाश समेटे आलोकमय दुनिया,
    मुक्त सीना हो सदा, हम ने ताउम्र बस इतना सीखा,
    वाह!!!
    बहुत खूब... लाजवाब।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (16-3-23} को "पसरी धवल उजास" (चर्चा अंक 4647) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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