सभी लोग यहाँ, उगते सूरज को सलाम करते हैं,
रंगीन पैरहन को देख सभी एहतिराम करते हैं,
उठ चुकी है मुद्दत हुई, दानिशवरों की महफ़िल,
अहमक़ ए मुल्क, जमीयत को ग़ुलाम करते हैं,
मुसनफ़ क्या शायर एक ही सिक्के के दो पहलू,
सभी ज़ेर ए चापलूसी तामीर ए कलाम करते हैं,
सजदे की निशानी, माथे पे लिए फिरते हैं लोग,
मुक़्क़दस पर्दों के पीछे सारे स्याह काम करते हैं,
संकरी गलियों की ज़िन्दगी, रहती है बेख़बर सी,
सभी महज़्ज़ब लोग इबादत सुबह शाम करते हैं,
* *
- - शांतनु सान्याल
17 मार्च, 2023
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