न कोई हम सुखन, न ही राज़ दार है बाक़ी,
अगरचे कुछ है, तो फ़क़त इंतज़ार है बाक़ी,
कोई भी चेहरा उसकी जगह नहीं ले सकता,
सदियों से मुसलसल, यही ऐतबार है बाक़ी,
रेत के जज़ीरे में, दूर तक है सिर्फ़ ख़ामोशी,
ताहम उम्मीद का, सजर सायादार है बाक़ी,
आधी रात गए, बेवजह किस की है, दस्तक,
किन हाथों में, ख़्वाबों का कारोबार है बाक़ी,
जाने कौन पढ़ता है मजरूह सांसों की शायरी,
भरम ही सही शहर में इक तलबगार है बाक़ी,
* *
- - शांतनु सान्याल
वाह! उम्दा!
जवाब देंहटाएंआपका असीम आभार आदरणीया ।
हटाएं