27 मार्च, 2023

गुमशुदा ख़्वाब - -

मासूम ख़्वाब कोई तारों भरी रात
में तन्हा करता है सफ़र,
जुगनुओं के देश से
हो कर सुबह की
ओर जाती है
रहगुज़र,

सरकते जा रहे हैं पीछे अनगिनत
नदी, पहाड़, नंगे दरख़्त, गहन
अंतरिक्ष में, ज़िन्दगी
तलाशती है जाने
किस का
घर,

कितने ही ख़्वाब सुदूर गामी रेल
के साथ हो जाते हैं लापता,
असंख्य तारक पुञ्ज,
टूट कर दिगंत
रेखा में जाते
हैं बिखर,

परित्यक्त अंधी घाटियों का, कोई
भी नहीं करता अन्वेषण, वक़्त
के साथ, कुछ अस्तित्व
भी हो जाते हैं
अवांछित
बंजर,

आखेटक रात्रि निरंतर खोजती है,
आसान भेद्य शिकार को,
अंतिम रेल के जाने
के बाद, निःशब्द
है प्लेटफार्म
की नज़र,
* *
- - शांतनु सान्याल

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