रिक्त है चाय की प्याली, चिपके हुए हैं कुछ
बिस्कुट के अवशोषित अंश, विलीन हो
चुकीं कब की चुस्कियां, अदृश्य
हैं ओठों के निशां, कब आँख
से छलकते हैं लवणीय
पानी, क्या कोई
बता सकता
है प्यार
की इंतहा ? समय के संग बहती चली जाती
हैं, सुदूर दिगंत की ओर कागज़ की
कश्तियाँ, चिपके हुए हैं कुछ
बिस्कुट के अवशोषित
अंश, विलीन हो
चुकीं कब की
चुस्कियां।
बता
सकता है क्या कोई, कितनी दूर जाने के बाद
रास्ता ख़ुद लिखे सफ़रनामा, गंत्वय
स्वयं ढूंढने आए मुसाफ़िर को,
ऐसा कुछ भी नहीं होता,
धीरे धीरे वक़्त भर
जाता है गहरे से
गहरे ज़ख्म
के तासीर
को, बस
सिरहाने पड़ी रहती हैं यादों की कुछ रंगीन सी
चिट्ठियां, रिक्त है चाय की प्याली, चिपके
हुए हैं कुछ बिस्कुट के अवशोषित अंश,
विलीन हो चुकीं कब की
चुस्कियां ।
* *
- - शांतनु सान्याल
16 मार्च, 2023
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खूबसूरत पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीय ।
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