रंगीन देह की थी अपनी अलग सीमाएं,
कोलाहल थमते ही लहरों ने किया
आत्म समर्पण, वक़्त के संग
उतर जाएंगे सभी कृत्रिम
रंग, रह जाएंगे सिर्फ
अदृश्य स्पर्श के
चिन्ह, तीन
खण्डों
में
है विभाजित ये जीवन, धूप, शिखा और
धुआं, विलुप्त प्रतिबिम्ब को खोजता
प्रणयी दर्पण, रंगीन देह की थी
अपनी अलग सीमाएं,
कोलाहल थमते
ही लहरों ने
किया
आत्म समर्पण । निःस्तब्ध सा है मुख्य
द्वार का सांकल, दस्तकों का हो
चुका समापन, मुहाने पर आ
हो जाती है विश्रृंखल नदी
भी परिश्रांत, हृदय वेग
है मंथर,पलकों पर
ठहरे हुए हैं कुछ
ओस कण,
उष्मित
अधरों पर हैं जागृत कुछ अनबुझ तृष्णा,
अंतरतम में है एक प्रदेश अशांत, फिर
भी विनिमय विधि रूकती नहीं,
हर एक का है अपना ही
तक़ाज़ा, हर एक की
अपनी उगाही,
मुश्किल है
हिय का
तर्पण,
रंगीन देह की थी अपनी अलग सीमाएं,
कोलाहल थमते ही लहरों ने किया
आत्म समर्पण ।
* *
- - शांतनु सान्याल
08 मार्च, 2023
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 09 मार्च 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ -०३-२०२३) को 'माँ बच्चों का बसंत'(चर्चा-अंक -४६४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएं