10 मार्च, 2023

नव रूपांतरण - -

तल विहीन गहनता में कहीं रहता है वो विरल मोती,
किसी नक्षत्र पुञ्ज की तरह जो है अंतरतम में
प्रतिबिंबित, कोहरे में ढकी हुई हैं पुरातन
सीढ़ियां, शैवाल के हरित चादर से
लिपटी रहती हैं डूबी हुईं सभी
अनुभूतियाँ, निःश्वास
के बुलबुलों से उठ
कर जागता है
अचेत सा
प्रणय
देवता, जल छवि की तरह उभरती हैं हृदय कैनवास
में असंख्य प्रेमाकृतियाँ, तरंगित भावनाओं में
उठते हैं अनगिनत अभिलाष, गहन से
गहनतम की ओर खींचे लिए जाता
है कोई, नींद से जाग उठती
हैं सदियों से शिथिल
पड़ी खामोशियाँ,
जल रंगों में
नाचते हैं
प्रति -
दीप्ती के असंख्य कण, मोती के स्पर्श से पुनर्जीवित
हो जाती हैं मृतप्राय रक्त धमनियां, कोहरे में
ढकी हुई हैं पुरातन सीढ़ियां, शैवाल के
हरित चादर से लिपटी रहती
हैं डूबी हुईं सभी
अनुभूतियाँ ।
* *
- - शांतनु सान्याल

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