तल विहीन गहनता में कहीं रहता है वो विरल मोती,
किसी नक्षत्र पुञ्ज की तरह जो है अंतरतम में
प्रतिबिंबित, कोहरे में ढकी हुई हैं पुरातन
सीढ़ियां, शैवाल के हरित चादर से
लिपटी रहती हैं डूबी हुईं सभी
अनुभूतियाँ, निःश्वास
के बुलबुलों से उठ
कर जागता है
अचेत सा
प्रणय
देवता, जल छवि की तरह उभरती हैं हृदय कैनवास
में असंख्य प्रेमाकृतियाँ, तरंगित भावनाओं में
उठते हैं अनगिनत अभिलाष, गहन से
गहनतम की ओर खींचे लिए जाता
है कोई, नींद से जाग उठती
हैं सदियों से शिथिल
पड़ी खामोशियाँ,
जल रंगों में
नाचते हैं
प्रति -
दीप्ती के असंख्य कण, मोती के स्पर्श से पुनर्जीवित
हो जाती हैं मृतप्राय रक्त धमनियां, कोहरे में
ढकी हुई हैं पुरातन सीढ़ियां, शैवाल के
हरित चादर से लिपटी रहती
हैं डूबी हुईं सभी
अनुभूतियाँ ।
* *
- - शांतनु सान्याल
10 मार्च, 2023
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
तल विहीन गहनता से निकले अनुभूतियों के मोती........वाह, बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
जवाब देंहटाएं