शताब्दियों से प्रवाहित हैं दो प्रणयी स्रोत,
कभी समानांतर, कभी व्युत्क्रम धारा,
मिलन बिंदु में कभी उभरे रेत के
द्वीप, अंतर्लीन है कभी
मुक्ता अभ्यंतरीण
जीवंत सीप,
नेह सेतु
के अनुबंध ले जाएं कभी अंतरिक्ष के उस
पार, कभी आत्मिक विघटन खोजे
पृथ्वी का अंतिम किनारा,
शताब्दियों से प्रवाहित
हैं दो प्रणयी स्रोत,
कभी समानांतर,
कभी व्युत्क्रम
धारा।
कभी देह बने अस्थिर नौका, अदृश्य हाथ
थामे सांसों के पतवार, कभी आलिंगन
मुक्त जीवन, कभी चुंबकीय प्रेम की
बौछार, मेघ की परछाइयों में
कभी उभरे अनंत प्रेम का
उपहार, दो देहों के
मध्य रहता है
एक अदृश्य
परिपूरक
समीकरण, इस में ही समाहित है सृष्टि
का सारांश सारा, शताब्दियों से
प्रवाहित हैं दो प्रणयी स्रोत,
कभी समानांतर, कभी
व्युत्क्रम धारा।
* *
- - शांतनु सान्याल
14 मार्च, 2023
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