मोम की तरह उन पिघलते लम्हों में,
कोई साया जिस्म ओ जां तर कर
गया, कभी सीने से लग
कभी रूह से मिल
कर, न जाने
वो किधर
गया,
उसकी बदन की ख़ुश्बू थी या मुकम्मल
संदली ज़िन्दगी, सब कुछ मेरा -
वो पलक झपकते; यूँ ही
ले गया, अभी अभी
था सांसों के
दरमियाँ,
और अभी, ज़िन्दगी मेरी अपने साथ ले
गया, वो जाने कौन था मसीहा
कोई साया जिस्म ओ जां तर कर
गया, कभी सीने से लग
कभी रूह से मिल
कर, न जाने
वो किधर
गया,
उसकी बदन की ख़ुश्बू थी या मुकम्मल
संदली ज़िन्दगी, सब कुछ मेरा -
वो पलक झपकते; यूँ ही
ले गया, अभी अभी
था सांसों के
दरमियाँ,
और अभी, ज़िन्दगी मेरी अपने साथ ले
गया, वो जाने कौन था मसीहा
या तूफ़ानी कोई शख्सियत,
सलीब से उतार कर
वजूद मेरा;
तपते
अंगारों पर बड़ी ख़ूबसूरती से रख गया - - -
- - शांतनु सान्याल
सलीब से उतार कर
वजूद मेरा;
तपते
अंगारों पर बड़ी ख़ूबसूरती से रख गया - - -
- - शांतनु सान्याल
वाह ... बेहतरीन भाव
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