अंदर का अमावस ज़रा भी
न बदला, चेहरे का
उजाला बदल के
देख लिया,
वक़्त
की रफ़्तार अपनी जगह -
वही है, कुछ दूर उसके
पीछे चल के देख
लिया, कोई
नहीं था
दूर
तक, इक मेरे सिवा, ख़ुद
से यूँ बाहर, निकल के
देख लिया, न जाने
कितना लम्बा है,
ये इंतज़ार,
सारी रात
पूरी
तरह जल के देख लिया, -
क़िस्मत के पहलू
ज़रा भी न लरज़े,
लकीरे दस्त
पर उछल
के देख
लिया,
बहुत नाज़ुक थे, सभी कांच
के रिश्ते, झूठे ख़्वाबों के
तहत ढल के देख
लिया, चेहरे
का
उजाला बदल के देख लिया।
* *
- - शांतनु सान्याल
27 फ़रवरी, 2021
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"बहुत नाज़ुक थे, सभी कांच
जवाब देंहटाएंके रिश्ते, झूठे ख़्वाबों के
तहत ढल के देख
लिया,......."
शायद सबका सच बयान कर दिया सर आपने ।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत नाज़ुक थे, सभी कांच
जवाब देंहटाएंके रिश्ते, झूठे ख़्वाबों के
तहत ढल के देख
लिया, चेहरे
का
उजाला बदल के देख लिया।..एहसासों का सारगर्भित सृजन..
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंओह, कभी कभी बदलाव भी कोई परिवर्तन नहीं लाते ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह!बेहतरीन सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सभी बंद सराहनीय।
जवाब देंहटाएंजीवन के प्रत्येक पहर का बख़ान करती सराहनीय अभिव्यक्ति।
सादर
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह । बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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