16 फ़रवरी, 2021

भव्य प्रदर्शन - -

अपनी मौजूदगी को हर हाल में दर्शाना
है ज़रूरी, भीतर से हम ख़ुश रहें या
न रहें, बाहर से ख़ुशी दिखाना
है ज़रूरी, पुरानी किताबों
की तरह कई रिश्ते
यूँ ही पड़े रहते
हैं शीशे के
ताक़ों में,
पढ़ें
या न पढ़ें, लेकिन जिल्द पे लिखे उनके
नाम बताना है ज़रूरी, भीतर से हम
ख़ुश रहें या न रहें, बाहर से
ख़ुशी दिखाना है ज़रूरी।
एक वजूद के अंदर न
जाने कितने वजूद
को सजा रखते
हैं लोग,
एक
अक्स उतार के, दूसरा बिम्ब उसी पल
उभार लेते हैं लोग, समझ में कुछ
आए या न आए, कोई बात
नहीं, हामी की ज़बां से,
सब कुछ, यूँ ही
समझाना है
ज़रूरी,
भीतर से हम ख़ुश रहें या न रहें, बाहर से
ख़ुशी दिखाना है ज़रूरी। मंदिर के
अंदर हो या मंदिर के बाहर बैठे
वो सभी कालग्रसित जीर्ण
चेहरों से, किसे क्या
लेना देना, बस
अपनी सभी
मन्नतों
का
वास्ता, नीलाभ कांच की खिड़कियों को
गिराए, घर से मंदिर तक अक्सर
आना जाना है ज़रूरी, भीतर
से हम ख़ुश रहें या न
रहें, बाहर से ख़ुशी
दिखाना है -
ज़रूरी।
कुछ
लोगों की नज़र पहुंचती है, दिलो दिमाग़
से कहीं आगे, अंदर के दलदल में
उतर कर कौन देखेगा, फ्रेम
में तस्वीर की दिव्यता
तो उभरे, लिहाज़ा
दाढ़ी के वन
को दूर
तक बढ़ाना है ज़रूरी, नीलाभ कांच की - -
खिड़कियों को गिराए, घर से मंदिर
तक अक्सर आना जाना है
ज़रूरी, अपनी मौजूदगी
को हर हाल में
दर्शाना है
ज़रूरी।

* *
- - शांतनु सान्याल

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज मंगलवार 16 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. भव्य प्रदर्शन..भौतिकवाद पर प्रहार करती रचना..

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  3. बहुत ही बेहतरीन रचना आदरणीय

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  4. बिलकुल जरूरी अहि अपने एहसास को जगाये रखना ... अपने एहसास को सबके सामने रखना ...
    अच्छी अभ्जिव्यक्ति ...

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  5. दिलो दिमाग़
    से कहीं आगे, अंदर के दलदल में
    उतर कर कौन देखेगा, फ्रेम
    में तस्वीर की दिव्यता
    तो उभरे, लिहाज़ा
    दाढ़ी के वन
    को दूर
    तक बढ़ाना है ज़रूरी, नीलाभ कांच की - -
    खिड़कियों को गिराए, घर से मंदिर
    तक अक्सर आना जाना है
    ज़रूरी, अपनी मौजूदगी
    को हर हाल में
    दर्शाना है
    ज़रूरी।..बहुत ही दार्शनिक अंदाज़..आज के दिखावे पर प्रहार करती रचना..

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  6. आत्म-प्रदर्शनइस सीमा तक हावी हो गया है कि व्यक्तित्व की अस्लियत सामने आ नहीं पाती.

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