14 फ़रवरी, 2021

सांसों के जिल्द - -

अंधकार को लहराती हुई
रात गुज़रती है, नंगे
पांव, सुनसान
रास्तों के
मोड़
पर पड़े रहते हैं छितरे हुए
कुछ अतीत के गांव,
भीगे हुए जिल्द
में बंद हैं कुछ
करवट
बदलते
हुए चेहरे, खिड़कियों के -
आड़ से उतरते हैं
कुछ ख़ुश्बुओं
के छांव,
मेघ
कण छू जाती हैं, कांपती
उँगलियों के किनार,
ज़रा सी ख़ुशी
की ख़ातिर
लगा
रहता है पूरी ज़िन्दगी का
दांव, कुछ लगाव होते
हैं समझ के बाहर,
छोड़ना चाहते
नहीं
पश्मीना के आवाज़ पर,
वो पड़े रहते हैं सीने से
से लग कर, उनकी
ख़ुशी है, विदीर्ण
कथरी के
अलाव।

* *
- - शांतनु सान्याल    





6 टिप्‍पणियां:

  1. कांपती उँगलियों के किनार,
    ज़रा सी ख़ुशी की ख़ातिर लगा रहता है पूरी ज़िन्दगी का दांव,
    कुछ लगाव होते हैं समझ के बाहर,
    छोड़ना चाहते नहीं पश्मीना के आवाज़ पर...

    बहुत सुंदर कविता..साधुवाद 🙏
    कृपया इस लिंक का भी अवलोकन करें....
    दस दोहे वसंत पर

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