सारी रात अरण्य जागता
रहा, सो गई नदी, सो
गया सुदूर तलहटी
का गांव, कुछ
जुगनुओं
की
बस्ती यूँ ही जलती बुझती
रही, तुम आते जाते
रहे, सांसों को, न
मिल सका, पल
भर का भी
ठहराव,
दूर
बहोत दूर, नील आलोक
में भीगती रहीं तुम्हारी
पलकें, गिरती रही
मद्धम, मद्धम,
मेरे प्यार
की
शबनम, जीवन यूँ ही - -
समेटता रहा बेख़ुदी
का बूंद, बूंद
बिखराव,
कुछ
सरसराहट, कुछ जिस्म -
को छूती हुई गिरते
पत्तों की आहट,
कुछ सुप्त
तरंगों
में
चाँदनी की दस्तक, फिर -
हम जी उठे हैं, करवट
बदलती नदी की
तरह, फिर
अज्ञात
किनारों की तरफ बह चले
हैं दीर्घ निःश्वासों के
अविरल बहाव।
* *
- - शांतनु सान्याल
12 फ़रवरी, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति शांतनु जी ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 12 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंअतिसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंखूबसूरत एहसासों के समुंदर में डूबी हुई कृति..
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ❗🙏❗
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंअत्यंत भावुक क्षणों के शब्द ...कि .. बहोत दूर, नील आलोक
जवाब देंहटाएंमें भीगती रहीं तुम्हारी
पलकें, गिरती रही
मद्धम, मद्धम,
मेरे प्यार
की
शबनम, जीवन यूँ ही - -
समेटता रहा बेख़ुदी
का बूंद, बूंद... डूबते उतराते पलों की ये पंक्तियां...वाह
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंउम्दा रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर ही अभिव्यक्ति,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं