12 फ़रवरी, 2021

अविरल बहाव - -

सारी रात अरण्य जागता
रहा, सो गई नदी, सो
गया सुदूर तलहटी
का गांव, कुछ
जुगनुओं
की
बस्ती यूँ ही जलती बुझती
रही, तुम आते जाते
रहे, सांसों को, न
मिल सका, पल
भर का भी
ठहराव,
दूर
बहोत दूर, नील आलोक
में भीगती रहीं तुम्हारी
पलकें, गिरती रही
मद्धम, मद्धम,
मेरे प्यार
की
शबनम, जीवन यूँ ही - -
समेटता रहा बेख़ुदी
का बूंद, बूंद
बिखराव,
कुछ
सरसराहट, कुछ जिस्म -
को छूती हुई गिरते
पत्तों की आहट,
कुछ सुप्त
तरंगों
में
चाँदनी की दस्तक, फिर -
हम जी उठे हैं, करवट
बदलती नदी की
तरह, फिर
अज्ञात
किनारों की तरफ बह चले
हैं दीर्घ निःश्वासों के
अविरल बहाव।

* *
- - शांतनु सान्याल




 

24 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति शांतनु जी ।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 12 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. खूबसूरत एहसासों के समुंदर में डूबी हुई कृति..

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  5. अत्यंत भावुक क्षणों के शब्द ...क‍ि .. बहोत दूर, नील आलोक
    में भीगती रहीं तुम्हारी
    पलकें, गिरती रही
    मद्धम, मद्धम,
    मेरे प्यार
    की
    शबनम, जीवन यूँ ही - -
    समेटता रहा बेख़ुदी
    का बूंद, बूंद... डूबते उतराते पलों की ये पंक्त‍ियां...वाह

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  6. बहुत सुंदर ही अभिव्यक्ति,सादर नमस्कार

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