27 फ़रवरी, 2021

बहुत कुछ देख लिया - -

अंदर का अमावस ज़रा भी
न बदला, चेहरे का
उजाला बदल के
देख लिया,
वक़्त
की रफ़्तार अपनी जगह -
वही है, कुछ दूर उसके
पीछे चल के देख
लिया, कोई
नहीं था
दूर
तक, इक मेरे सिवा, ख़ुद
से यूँ बाहर, निकल के
देख लिया, न जाने
कितना लम्बा है,
ये इंतज़ार,
सारी रात
पूरी
तरह जल के देख लिया, -
क़िस्मत के पहलू
ज़रा भी न लरज़े,
लकीरे दस्त
पर उछल
के देख
लिया,
बहुत नाज़ुक थे, सभी कांच
के रिश्ते, झूठे ख़्वाबों के
तहत ढल के देख
लिया, चेहरे
का
उजाला बदल के देख लिया।

* *
- - शांतनु सान्याल
 
 
  

16 टिप्‍पणियां:

  1. "बहुत नाज़ुक थे, सभी कांच
    के रिश्ते, झूठे ख़्वाबों के
    तहत ढल के देख
    लिया,......."


    शायद सबका सच बयान कर दिया सर आपने ।

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  2. बहुत नाज़ुक थे, सभी कांच
    के रिश्ते, झूठे ख़्वाबों के
    तहत ढल के देख
    लिया, चेहरे
    का
    उजाला बदल के देख लिया।..एहसासों का सारगर्भित सृजन..

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  3. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  4. ओह, कभी कभी बदलाव भी कोई परिवर्तन नहीं लाते ।
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

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  5. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सभी बंद सराहनीय।
    जीवन के प्रत्येक पहर का बख़ान करती सराहनीय अभिव्यक्ति।
    सादर

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