दूर तक देखा है लौट जाते हुए
मधुमास को, उड़ते पत्तों
के हमराह, बिंदु बिंदु
झरते हुए सभी
अनुराग को।
फिर भी
जीवन के अनुसंधान का नहीं
है कोई अंत, हर एक क़दम
पर है नव अभिज्ञता,
हर एक पल में
है एक नविन
उपलब्धि,
हर एक मोड़ पर हैं उभरते हुए
पुष्प वृन्त, जीवन के सतत
अनुसंधान का नहीं है
कोई अंत। वृष्टि
और अनावृष्टि
के उस
अनसुलझे समीकरण में कहीं,
जीवन लिखे जाता है,
मुक्त छंदों की
कविता,
सभी
विसंगतियों को एक बिंदु पर
मिलाने का प्रयास, हर
सुबह एक निःशर्त
अनुबंध उजाले
के साथ,
हर
रात गाढ़ अंधकार से एक अंध
समझौता, टूटती बिखरती
गिरती संभलती बढ़े
जाए हर हाल में
सांसों की
सरिता,
अनसुलझे समीकरण में कहीं,
जीवन लिखे जाता है,
मुक्त छंदों की
कविता।
हर
कोई तलाशता है सुनहरे फ्रेम में
ख़्वाबों की दुनिया, अधरों पर
चमकते हुए मृगजल की
बूंदें, सीने से उभरते
हुए सुरभित
स्पंदन,
पलकों के सभी नम प्रदेश ढक
जाते हैं शेष प्रहर के नील -
अंजन, देखता हूँ मैं
बड़ी उम्मीद से
भोर के उस
आकाश
को,
दूर तक देखा है लौट जाते हुए
मधुमास को - -
* *
- - शांतनु सान्याल
20 फ़रवरी, 2021
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सारगर्भित सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंगहन चिंतन । उदासियों में भी ज़िन्दगी का फलसफा है ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं