05 फ़रवरी, 2021

सदियों की तिश्नगी - -

उस मरूद्वीप में जा कर, बुझ
न सकी बरसों की तिश्नगी,
नमकीन झीलों को
छू कर, बारहा
लौट आई
ज़िन्दगी,
यहाँ हर चीज़ है दस्तयाब, - -
कहने को है पत्थरों का
शहर, हर सिम्त
हैं इबादतगाह,
फिर भी
अधूरी रहती है बंदगी, चाँदनी
की लहर गुम है, कहीं
ऊंची मंज़िलों के
ओट में,
हथेलियों से उड़ गए जुगनू,- -
बाक़ी हैं एहसासों की
ख़ुशी, झूलते हैं
शबनमी
ख़्वाब,
कटी पतंगों की कंटीली डोर से,
बहुत मुश्किल है समझना,
मुहाजिर परिंदों की
आवारगी,
कितनी
ख़ूबसूरती से लोग, निबाह जाते
हैं जाली रिश्ता, अंदर हैं
ज़हर बुझे तीर,
आँखों में
है इक
बला की सादगी, उस मरूद्वीप में
जा कर, बुझ न सकी बरसों
की तिश्नगी।

* *
- - शांतनु सान्याल
   
 

 




26 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी
    ख़ूबसूरती से लोग, निबाह जाते
    हैं जाली रिश्ता, अंदर हैं
    ज़हर बुझे तीर,
    आँखों में
    है इक
    बला की सादगी, ..सुंदर और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  2. बहुत खूबसूरत लेखनी है आपकी..
    सादर प्रणाम

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०२-२०२१) को 'स्वागत करो नव बसंत को' (चर्चा अंक- ३९६९) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  4. मुहाजिर परिंदों की
    आवारगी,
    कितनी
    ख़ूबसूरती से लोग, निबाह जाते
    हैं जाली रिश्ता, अंदर हैं
    ज़हर बुझे तीर,

    वाह!!!
    बहुत खूब !!!
    उम्दा....

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  5. उस मरूद्वीप में जा कर, बुझ
    न सकी बरसों की तिश्नगी,
    नमकीन झीलों को
    छू कर, बारहा
    लौट आई
    ज़िन्दगी,
    बहुत खूब,सादर नमन

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  6. वाह शांतनु जी, कटी पतंगों की कंटीली डोर से,
    बहुत मुश्किल है समझना,
    मुहाजिर परिंदों की
    आवारगी,
    कितनी
    ख़ूबसूरती से लोग, निबाह जाते
    हैं जाली रिश्ता...क्या खूब ल‍िखा आपने ..बहुत सुंदर

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  7. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय अभिव्यक्ति

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