19 फ़रवरी, 2021

स्व - परिक्रमा - -

प्रेम स्वीकृति चाहता है, अंदर की सत्ता का
चाहे वो जैसा भी हो, क्योंकि उस भीतर
की सुंदरता में ही रहता है, परम
सत्य का वास, बाह्य खोल
समय के साथ अपनी
मौलिकता खो
देता है, कर
जाता
है उजाड़ जीवन परिधि अधिकांश, भीतर -
की सुंदरता में ही रहता है, परम सत्य
का वास। शरीर के तत्व टूटते
रहते हैं, अदृश्य अवयवों
में, हम बांधते रहते
हैं, मन्नतों के
धागे,
कल्पतरु के नर्म टहनियों में, आरशीनगर
के हैं सभी निवासी, फिर भी पत्थरों
पर है अगाध विश्वास,  भीतर
की सुंदरता में ही रहता है,
परम सत्य का वास।
सब कुछ है
नश्वर,
फिर भी हम गढ़ते हैं चाँद रातों में असंख्य
सपनों के महल, कुछ ज्वार ढहा जाते
मध्य रात, कुछ देह से टकरा
कर लहरों में जाते हैं
घुल, खोजते हैं
हम एक
दूजे के धमनियों में, जिसे सुबह तक पाने
की रहती है आस, वो नहीं मिलता
उम्र भर, केवल कुछ मृत
सीपों के खोल बिखरे
होते हैं, चन्दन
पलंग के
आसपास, भीतर की सुंदरता में ही रहता -
है, परम सत्य का वास।

* *
- - शांतनु सान्याल


20 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम स्वीकृति चाहता है, अंदर की सत्ता का
    चाहे वो जैसा भी हो, क्योंकि उस भीतर
    की सुंदरता में ही रहता है, परम
    सत्य का वास, बाह्य खोल
    समय के साथ अपनी
    मौलिकता खो
    देता है, ..मौलिक कथन है आपका..सार्थक रचना..

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  4. जिसे सुबह तक पाने की रहती है आस,
    वो नहीं मिलता उम्र भर,
    केवल कुछ मृत सीपों के खोल बिखरे होते हैं,
    चन्दन पलंग के आसपास,
    भीतर की सुंदरता में ही रहता है,
    परम सत्य का वास।

    अद्भुत...
    अप्रतिम...
    बहुत सुंदर कविता

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  5. आसपास, भीतर की सुंदरता में ही रहता -
    है, परम सत्य का वास।

    बहुत सुंदर बात । अच्छी कृति ।

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  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२०-०२-२०२१) को 'भोर ने उतारी कुहासे की शाल'(चर्चा अंक- ३९८३) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  7. पूर्ण सत्य जिसके ज्ञान हेतु स्वयं के अंतर्मन की यात्रा आवश्यक है । ऐसए ज्ञानोदय से ओतप्रोत सृजन में आप निष्णात हैं शांतनु जी । अभिनंदन ।

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  8. लाज़बाब सृजन ,सादर नमन आपको

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  9. शीशे के घर में रहता है हर सख्स पर पत्थरों से मोह कहां छोड़ पाते हैं ।
    अतिसुंदर।अभिनव सृजन।

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