प्रेम स्वीकृति चाहता है, अंदर की सत्ता का
चाहे वो जैसा भी हो, क्योंकि उस भीतर
की सुंदरता में ही रहता है, परम
सत्य का वास, बाह्य खोल
समय के साथ अपनी
मौलिकता खो
देता है, कर
जाता
है उजाड़ जीवन परिधि अधिकांश, भीतर -
की सुंदरता में ही रहता है, परम सत्य
का वास। शरीर के तत्व टूटते
रहते हैं, अदृश्य अवयवों
में, हम बांधते रहते
हैं, मन्नतों के
धागे,
कल्पतरु के नर्म टहनियों में, आरशीनगर
के हैं सभी निवासी, फिर भी पत्थरों
पर है अगाध विश्वास, भीतर
की सुंदरता में ही रहता है,
परम सत्य का वास।
सब कुछ है
नश्वर,
फिर भी हम गढ़ते हैं चाँद रातों में असंख्य
सपनों के महल, कुछ ज्वार ढहा जाते
मध्य रात, कुछ देह से टकरा
कर लहरों में जाते हैं
घुल, खोजते हैं
हम एक
दूजे के धमनियों में, जिसे सुबह तक पाने
की रहती है आस, वो नहीं मिलता
उम्र भर, केवल कुछ मृत
सीपों के खोल बिखरे
होते हैं, चन्दन
पलंग के
आसपास, भीतर की सुंदरता में ही रहता -
है, परम सत्य का वास।
* *
- - शांतनु सान्याल
19 फ़रवरी, 2021
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प्रेम स्वीकृति चाहता है, अंदर की सत्ता का
जवाब देंहटाएंचाहे वो जैसा भी हो, क्योंकि उस भीतर
की सुंदरता में ही रहता है, परम
सत्य का वास, बाह्य खोल
समय के साथ अपनी
मौलिकता खो
देता है, ..मौलिक कथन है आपका..सार्थक रचना..
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंमधुमास में प्रेम पर सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंजिसे सुबह तक पाने की रहती है आस,
जवाब देंहटाएंवो नहीं मिलता उम्र भर,
केवल कुछ मृत सीपों के खोल बिखरे होते हैं,
चन्दन पलंग के आसपास,
भीतर की सुंदरता में ही रहता है,
परम सत्य का वास।
अद्भुत...
अप्रतिम...
बहुत सुंदर कविता
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआसपास, भीतर की सुंदरता में ही रहता -
जवाब देंहटाएंहै, परम सत्य का वास।
बहुत सुंदर बात । अच्छी कृति ।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२०-०२-२०२१) को 'भोर ने उतारी कुहासे की शाल'(चर्चा अंक- ३९८३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंपूर्ण सत्य जिसके ज्ञान हेतु स्वयं के अंतर्मन की यात्रा आवश्यक है । ऐसए ज्ञानोदय से ओतप्रोत सृजन में आप निष्णात हैं शांतनु जी । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंलाज़बाब सृजन ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंशीशे के घर में रहता है हर सख्स पर पत्थरों से मोह कहां छोड़ पाते हैं ।
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर।अभिनव सृजन।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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