08 फ़रवरी, 2021

सफ़र का अंतिम बिंदु - -

इस अंध यात्रा का कोई अंत नहीं, कोई
स्पर्श है, जो अपनी तरफ खींचे
लिए जाता है, वो निःस्वार्थ
लगाव है या स्पृहा,
जितना ऊपर
हम आना
चाहें,
उतना ही वो नीचे लिए जाता है। कोई
दहलीज़ पर खड़ा है, या उजालों
की है दस्तक, मैं खोलना
चाहता हूँ, सुबह का
बंद दरवाज़ा
लेकिन
कोई
सम्मोहन मुझे बहुत पीछे लिए जाता है,
कोई स्पर्श है, जो अपनी तरफ खींचे
लिए जाता है। मुझे पता है, इस
जीवन की त्रिकोणमिति,
हिसाब - किताब से
कभी हल
नहीं
होगी आपबीती, मुझे नहीं बनना किसी
का कोई अनुकंपित पात्र, फिर भी
न जाने क्यों मुझे, वो अपने
सीने में भींचे लिए
जाता है, कोई
सम्मोहन
मुझे
बहुत पीछे लिए जाता है। इस सफ़र का
अंतिम स्टेशन, कोई आलोकमय
महानगर है, या कुहासे में
डूबा कोई अज्ञात
समुद्र तट,
किसी
को
कुछ भी नहीं पता, जितनी मुंह, उतनी
बातें, वही चबूतरा नीम तले, वही
अख़बारों का पनघट, हर
कोई मुझे अपने
अपने दरीचे
लिए
जाता है, मुझे नहीं चाहिए दिखावे का -
अपनापन, फिर भी न जाने क्यों
मुझे, वो अपने सीने में भींचे
लिए जाता है - -

* *
- - शांतनु सान्याल    
 


 


19 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 08 फरवरी को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. "स सफ़र का
    अंतिम स्टेशन, कोई आलोकमय
    महानगर है, या कुहासे में
    डूबा कोई अज्ञात
    समुद्र तट,
    किसी
    को
    कुछ भी नहीं पता,"
    --
    बहुत अच्छी विवेचना।

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति शांतनु जी ।

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  4. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  5. जितनी मुंह, उतनी
    बातें, वही चबूतरा नीम तले, वही
    अख़बारों का पनघट, हर
    कोई मुझे अपने
    अपने दरीचे
    लिए
    जाता है, मुझे नहीं चाहिए दिखावे का -
    अपनापन, फिर भी न जाने क्यों
    मुझे, वो अपने सीने में भींचे
    लिए जाता है - - बहुत ही सुंदर,भाव भरा चित्रण..

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