इस अंध यात्रा का कोई अंत नहीं, कोई
स्पर्श है, जो अपनी तरफ खींचे
लिए जाता है, वो निःस्वार्थ
लगाव है या स्पृहा,
जितना ऊपर
हम आना
चाहें,
उतना ही वो नीचे लिए जाता है। कोई
दहलीज़ पर खड़ा है, या उजालों
की है दस्तक, मैं खोलना
चाहता हूँ, सुबह का
बंद दरवाज़ा
लेकिन
कोई
सम्मोहन मुझे बहुत पीछे लिए जाता है,
कोई स्पर्श है, जो अपनी तरफ खींचे
लिए जाता है। मुझे पता है, इस
जीवन की त्रिकोणमिति,
हिसाब - किताब से
कभी हल
नहीं
होगी आपबीती, मुझे नहीं बनना किसी
का कोई अनुकंपित पात्र, फिर भी
न जाने क्यों मुझे, वो अपने
सीने में भींचे लिए
जाता है, कोई
सम्मोहन
मुझे
बहुत पीछे लिए जाता है। इस सफ़र का
अंतिम स्टेशन, कोई आलोकमय
महानगर है, या कुहासे में
डूबा कोई अज्ञात
समुद्र तट,
किसी
को
कुछ भी नहीं पता, जितनी मुंह, उतनी
बातें, वही चबूतरा नीम तले, वही
अख़बारों का पनघट, हर
कोई मुझे अपने
अपने दरीचे
लिए
जाता है, मुझे नहीं चाहिए दिखावे का -
अपनापन, फिर भी न जाने क्यों
मुझे, वो अपने सीने में भींचे
लिए जाता है - -
* *
- - शांतनु सान्याल
08 फ़रवरी, 2021
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जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं"स सफ़र का
जवाब देंहटाएंअंतिम स्टेशन, कोई आलोकमय
महानगर है, या कुहासे में
डूबा कोई अज्ञात
समुद्र तट,
किसी
को
कुछ भी नहीं पता,"
--
बहुत अच्छी विवेचना।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति शांतनु जी ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंब्लैक होल
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंलाजवाब।👌
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंजितनी मुंह, उतनी
जवाब देंहटाएंबातें, वही चबूतरा नीम तले, वही
अख़बारों का पनघट, हर
कोई मुझे अपने
अपने दरीचे
लिए
जाता है, मुझे नहीं चाहिए दिखावे का -
अपनापन, फिर भी न जाने क्यों
मुझे, वो अपने सीने में भींचे
लिए जाता है - - बहुत ही सुंदर,भाव भरा चित्रण..
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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