वो कोई फ़रिश्ता न था, इन्सां
का मुकर जाना है लाज़िम,
शाख़ फिर लद जाएंगे,
गुलों का बिखर
जाना है
लाज़िम,
सूरत के साथ सीरत भी हो, -
उतना ही रौशन ज़रूरी
नहीं, जब ढल जाए
उम्र की धूप,
कोने में
ठहर जाना है लाज़िम, यूँ - -
तो ज़िन्दगी भर
भटकता रहा
है वो
अख़लाख़ी शहर में, लम्बी - -
हिजरत के बाद लौट
के अपने घर
जाना है
लाज़िम,
उस
ता'वीज़ के अंदर थे, न जाने
कितने श्लोक और
आयत, नियत
बांध के भी,
कुछ
असूलों से सिहर जाना है - -
लाज़िम, वो ख़ानाबदोश
है कई जन्मों से,
उसे क़ैद
करना
नहीं
आसां, पिंजरे में बंद करते ही
उसका, निःशब्द मर
जाना है लाज़िम।
* *
- - शांतनु सान्याल
06 फ़रवरी, 2021
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वो ख़ानाबदोश
जवाब देंहटाएंहै कई जन्मों से,
उसे क़ैद
करना
नहीं
आसां, पिंजरे में बंद करते ही
उसका, निःशब्द मर
जाना है लाज़िम।
बहुत खूब !! हृदयस्पर्शी सृजन शांतनु सर! आपकी सृजनशीलता को नमन🙏
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 06 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंहिजरत के बाद लौट के अपने घर जाना है लाज़िम,
जवाब देंहटाएंउस ताबीज़ के अंदर थे,
न जाने कितने श्लोक और आयत,
नियत बांध के भी,
कुछ असूलों से सिहर जाना है - -
बहुत ख़ूब...
गहरे भाव समाहित हैं इस कविता में,
साधुवाद 🙏
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंउस
जवाब देंहटाएंताबीज़ के अंदर थे, न जाने
कितने श्लोक और
आयत, नियत
बांध के भी,
वाह !!!
बहुत सुंदर ..🌹🙏🌹
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति,सादर नमन
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी रचनाओं को पढ़ने के बाद निशब्द हो जाना है लाज़िम!!
जवाब देंहटाएंआपका लेखन और भावों का विस्तार आश्चर्य से भर जाता है ।हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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