28 फ़रवरी, 2021

दूर का परिदृश्य - -

नहीं मिटाया जा सकता सब कुछ,
कुछ रंगों के कणों में रहते हैं,
भीतर तक अदृश्य, छुपे
हुए जज़्बात के
अति सूक्ष्म
रेशे,
कहने को दूर से डायरी के पृष्ठ -
यूँ तो कोरे नज़र आते हैं,
रंध्र प्रति रंध्र बासी -
पन का होता है
साम्राज्य,
चेहरे
का बिम्ब तलाशता है खोयी हुई
मुस्कान, अमूल्य इत्र के
सुरासार, हवाओं के
साथ बिखर
जाते हैं,
कहने
को दूर से डायरी के पृष्ठ, यूँ तो
कोरे नज़र आते हैं, बहुत
कुछ तोड़ने की चाह
में बहुत कुछ
ख़ुद से
हम
जोड़ भी जाते हैं, किसी एक दिन
मैंने सभी इंद्रधनुषों को अपने
जीवन से दूर फेंक दिया
था, आज उम्र की
ढलान पर
फिर
उसी गुमशुदा सावन को खोजता
हूँ, न चाहते हुए भी उन बिखरे
पलों को जोड़ता  हूँ, अजीब
से हैं, ये श्वसन आलेख,
अधिक ऊपर उठने
की चाह में
मूल
बिंदू पर ही ठहर जाते हैं, कहने
को दूर से डायरी के पृष्ठ, यूँ
तो कोरे नज़र आते हैं,
अंदर का आर्तनाद
अक्सर
बना
जाता है अपाहिज, असर हो या
नहीं, अनीति को देख कर
चिल्लाना है ज़रूरी,
अंदर के बिम्ब
को जगाना
है ज़रूरी,
इस
दौर के जुलूस निकलते तो हैं - -
बहुत ही जोश ओ ख़रोश से,
लेकिन कुछ दूर जा
कर न जाने
किधर
जाते
हैं,
कहने को दूर से डायरी के पृष्ठ,
यूँ तो कोरे नज़र
आते हैं।

* *
- - शांतनु सान्याल

24 टिप्‍पणियां:

  1. किसी एक दिन
    मैंने सभी इंद्रधनुषों को अपने
    जीवन से दूर फेंक दिया
    था, आज उम्र की
    ढलान पर
    फिर
    उसी गुमशुदा सावन को खोजता
    हूँ, न चाहते हुए भी उन बिखरे
    पलों को जोड़ता हूँ,

    भावों को सटीक शब्द दिए हैं ।सुंदर ।

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  2. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  3. बिलकुल ठीक कहा है शांतनु जी आपने । आपकी रचनाओं को पढ़ने का आनंद ही कुछ और है ।



















    ही

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  4. सादर नमस्कार सर।
    आपका सृजन निशब्द कर जाता है और अपना सा लगता है।
    सादर

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  5. कुछ रंगों के कणों में रहते हैं,
    भीतर तक अदृश्य, छुपे
    हुए जज़्बात के
    अति सूक्ष्म
    रेशे,
    कहने को दूर से डायरी के पृष्ठ -
    यूँ तो कोरे नज़र आते हैं,
    अति सुन्दर !हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

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  6. बेहद सुंदर अभिव्यक्ति,सादर नमन

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  7. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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