11 फ़रवरी, 2021

पारदर्शी द्रव्य - -

लेन देन की दुनिया में, कुछ
भी निःशर्त नहीं होता,
हर एक चमकदार
प्याले का
द्रव्य
अमृत नहीं होता, इस चौक
से हो कर गुज़रते हैं
चार दिशाओं के
रस्ते, इन
रास्तों
से गुज़रे बिना कोई भी निवृत
नहीं होता, उस नील पर्वत
के शीर्ष में, जलती है
कोई अखंड बाती,
अंतरतम में
पहुंचे
बग़ैर ह्रदय दर्पण जागृत नहीं
होता, प्रीत के धागे बना
जाते हैं, हिंस्र को भी
गृहपालित प्राणी,
दरअसल,
यहाँ
कोई किसी का यूँ ही आश्रित
नहीं होता, अनुरागी स्रोत
नहीं रुकते, बहे जाते
हैं ढलानों की
ओर, वृद्ध
चेहरा
अपने ही घर में, अकारण यूँ
ही निर्वासित नहीं
होता।

* *
- - शांतनु सान्याल

   
 
 

18 टिप्‍पणियां:

  1. उस नील पर्वत
    के शीर्ष में, जलती है
    कोई अखंड बाती,
    अंतरतम में
    पहुंचे
    बग़ैर ह्रदय दर्पण जागृत नहीं
    होता..बहुत सुन्दर सन्दर्भ रेखांकित किया है आपने..मन में उतरती सुन्दर रचना..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति शांतनु जी - सटीक भी, मार्मिक भी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 12-02-2021) को
    "प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है" (चर्चा अंक- 3975)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज गुरुवार 11 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. "अंतरतम में पहुंचे बग़ैर ह्रदय दर्पण जागृत नहीं होता"

    बहुत सुंदर सृजन

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहद भावपूर्ण
    गहन अर्थ लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
    सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past