लेन देन की दुनिया में, कुछ
भी निःशर्त नहीं होता,
हर एक चमकदार
प्याले का
द्रव्य
अमृत नहीं होता, इस चौक
से हो कर गुज़रते हैं
चार दिशाओं के
रस्ते, इन
रास्तों
से गुज़रे बिना कोई भी निवृत
नहीं होता, उस नील पर्वत
के शीर्ष में, जलती है
कोई अखंड बाती,
अंतरतम में
पहुंचे
बग़ैर ह्रदय दर्पण जागृत नहीं
होता, प्रीत के धागे बना
जाते हैं, हिंस्र को भी
गृहपालित प्राणी,
दरअसल,
यहाँ
कोई किसी का यूँ ही आश्रित
नहीं होता, अनुरागी स्रोत
नहीं रुकते, बहे जाते
हैं ढलानों की
ओर, वृद्ध
चेहरा
अपने ही घर में, अकारण यूँ
ही निर्वासित नहीं
होता।
* *
- - शांतनु सान्याल
11 फ़रवरी, 2021
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उस नील पर्वत
जवाब देंहटाएंके शीर्ष में, जलती है
कोई अखंड बाती,
अंतरतम में
पहुंचे
बग़ैर ह्रदय दर्पण जागृत नहीं
होता..बहुत सुन्दर सन्दर्भ रेखांकित किया है आपने..मन में उतरती सुन्दर रचना..
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति शांतनु जी - सटीक भी, मार्मिक भी ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 12-02-2021) को
"प्रज्ञा जहाँ है, प्रतिज्ञा वहाँ है" (चर्चा अंक- 3975) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 11 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं"अंतरतम में पहुंचे बग़ैर ह्रदय दर्पण जागृत नहीं होता"
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबेहद भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंगहन अर्थ लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
सादर प्रणाम।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंशानदार सृजन..
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम..
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंशांतनु जी बहुत अच्छी रचना है
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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