25 फ़रवरी, 2021

अपना बना के देखेंगे - -

है अंधेरे का तोहफ़ा, तो दिल का
दीया जला के देखेंगे, इक
चश्म ए शबनम मिल
जाए, रूह में छुपा
के देखेंगे,
हर
एक मोड़ पर खड़े हैं, कई शुब्ह
चेहरों की मजलिस, अंजाम
ए दोस्ती जो भी हो, फिर
हाथ मिला के देखेंगे,
न जाने कितनी
बार, यूँ ही
लूटा
है तेरी महफ़िल ने हमें, जीस्त
की जुस्तज़ू  में फिर से, यूँ
ही दिल लगा के देखेंगे,
दरवेशी ख़्यालों का,
ओढ़ना ओ
बिछौना
सब
हैं बराबर, सारे जहां के मालिक
को, इक रोज़ घर बुला के
देखेंगे, दुआओं का
असर दूर तक
पहुँचता है,
ये
हमने सुना है, पत्थर ही सही,
अक़ीदत के वास्ते सर
झुका के देखेंगे,
निगाहों में
मूरत
उभरती है, तो लगे सारा जग
अपना, उस बेनज़ीर चेहरे
को इक दिन, तहे
रूह बसा के
देखेंगे।
* *
- - शांतनु सान्याल
अर्थ :
तोहफ़ा - पुरस्कार
शुब्ह - छद्म
मजलिस - जमाव
चश्म ए शबनम - आंख के ओस कण
जीस्त - जीवन
जुस्तज़ू - खोज
दरवेशी - वैरागी
अक़ीदत - श्रद्धा
बेनज़ीर - असाधारण

24 टिप्‍पणियां:

  1. वाह। बेहतरीन क्या खूब लिखा है आपने। पढ़कर बहुत अच्छा लगा।

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
    "कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 25 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सीधे दिल से निकली हैं ये बातें शांतनु जी । और क्या ख़ूब निकली हैं !

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  5. बेहतरीन सकारात्मक सृजन।
    प्रणाम सर।
    सादर।

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  6. है अंधेरे का तोहफ़ा, तो दिल का
    दीया जला के देखेंगे, इक
    चश्म ए शबनम मिल
    जाए, रूह में छुपा
    के देखेंगे..…बहुत ही सुंदर रचना

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