मायावी प्रकाश, बनावटी समंदर 
की तल भूमि, ऊपर उठते 
नन्हें बुलबुले, नक़ली 
प्रवाल भित्ति,
फ़िरोज़ा 
लहरों मे कहीं, कुछ ढूंढती सी है -
ज़िन्दगी, सुदूर रेत के टीलों 
पर रात ढले, गिरते हैं 
ओस कण, छोड़ 
जाते हैं, कुछ 
ख़्वाब के 
निशां टूटते हुए तारे, यूँ ही बारम्बार 
उजड़ कर संवरती सी है ज़िन्दगी, 
जाने क्या तिलिस्म है 
उस अप्रत्याशित 
छुअन में,
देह 
प्राण जी उठते हैं सहसा एक लंबे -
शीत निद्रा से, गर्म सांसों से 
लम्हा लम्हा पिघलती 
सी है ज़िन्दगी, 
बहुरंगी 
मीनपंखों से तैरती हैं हसीं लफ़्ज़ों 
की कश्तियाँ, कांच के 
दीवारों से टकरा 
कर लौट 
आती 
हैं परछाइयां, चाँद के अक्स को -
छूने के लिए मचलती सी 
है ज़िन्दगी, रात की 
आख़री ट्रेन जा 
चुकी पटरियां 
धुंध में खो 
गए, दूर तक है अंतहीन सन्नाटा, 
हर शै मद्धम से हो गए,
सुनसान स्टेशन से 
कुछ मिलती 
जुलती -
सी है 
ज़िन्दगी। 
* * 
- - शांतनु सान्याल 
 
22 जनवरी, 2021
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वाह
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 22 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंअद्भुत शब्द चित्र शांतनु की. इतना सुंदर और इस तरह का आप ही लिख सकते हैं. हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 23 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह! जिंदगी को उकेर दिया आपने! शफरी ज्यों एक्वेरियम में भटकती मचलती जिंदगी।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंउम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंखूबसूरत बिंबों का सहज प्रवाह ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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