नीरव रजनी, झरे थम थम पारिजात
महके निशिगंध निःस्तब्ध पीपल पात,
नेह सजे फिर बैरागी, भूलें हम संसार
अतृप्त श्रोत बहती जाए अंतर्मन के पार,
अहर्निश सुप्त यमन, गाए निर्झर गान,
अशांत हिय, क्लांतमय, मम देह प्राण,
जलरंग चित्र, रिश्तों के नाज़ुक दीवारें,
घुलनशील स्मृति कण ये दर्द की फुआरें,
मायावी पृथ्वी जी चाहे छूना स्वर्ण हिरण,
अलकों में मोती, देह बने सीप आवरण,
सुरभित स्वर, मुखरित शेष प्रहर संगीत,
अधरों में मधु स्पर्श, हृदय पुष्प मनमीत।
- शांतनु सान्याल
27 जून, 2023
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बहुत सुन्दर शब्दों से रचित सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी - धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया नव कृति के लिए प्रेरित करतीं हैं , नमन सह /
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