वयोवृद्ध स्मृतियां कभी मरती नहीं,
बारम्बार लौट आती हैं बन कर
जातिस्मर, कतिपय
असमाप्त सृजन
कुछ अधूरे
स्वप्न,
पुनर्मिलन के लिए देते हैं अवसर,
कोई मानें या नहीं, देह के
भष्म से पुनः उग
कर इतिवृत्त
रचता है
विप्लवी
घर,
दंड यष्टि है पास तुम्हारे, किन्तु
ये न भूलें कि नियति विधान
में हैं सभी बराबर,पुनर्जन्म
ले कर फिर तुम से होगी
भेंट, किसी अन्य
रूप रंग में
किसी
और नगर, इतिहास दोहराता है
स्वयं को फिर जी उठेंगी
डूबी नौकाएं, पाल
उड़ेंगे शहर शहर,
कुछ ख़ामोश
पल, रेशमी
स्पर्श,
मधुर अनुभूति के संग जुड़े रहते हैं
सदा परस्पर।
* *
- - शांतनु सान्याल
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