बहुत कुछ बुझने के बाद भी धुआं था
कि ऊपर उठता रहा,
बहुत कुछ कहने के बाद भी अंदर ही
अंदर दम घुटता रहा,
मरुनदी की तरह सभी स्वप्न एक दिन
हो जाएंगे जलविहीन,
खोजेंगे तब लोग जीवाश्म की परतों में
कुछ जलछवि रंगीन,
ये जो दिलों के दरमियां अदृश्य उठ
रही हैं पृथकता की दीवार,
एक दिन उजाड़ कर जाएंगी हर शै
को रह जाएगा शून्य संसार,
उन अधूरी बातों के मध्य से गुज़रती है
एक विशाल गहरी नदी,
न तुम इधर आ पाए, न मैं उसे पार कर
सका, यथावत निरावधि,
- शांतनु सान्याल
03 जून, 2023
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