24 जून, 2023

अंतिम अध्याय - -

जो कुछ भी था आसपास, असल में कुछ भी मेरा न था,
जीवन एक वृत्त के भीतर ही करता रहा अनेक निर्वासन,

यात्रा में असंख्य पड़ाव आए कुछ पल थम कर आगे बढ़े,
भूमिका जिस तरह की रही वैसा ही रहा बिंब - परावर्तन,

कुछ अनुबंध थे अनचाहे कुछ समझौते जीने की मजबूरी,
प्रत्येक रात बंजर भूमि, हर सुबह एक मिथ्या आश्वासन,

समय है एक कुशल रफू कारीगर हरेक दरार को भर जाए,
उतार चढ़ाव के साथ ही अहर्निश चलता रहा जीवनयापन,

मृगतृषा की तरह थे सभी चाहत कल्प वृक्षों से लटके हुए,
प्रणय पिपासा अंतहीन, सघन अरण्य में नित्य अनुधावन,
* *
- - शांतनु सान्याल    

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