तुम मुझ में एक मुद्दत से हो विलीन,
तुम्हारी चाहत का सफ़र है अंतहीन,
यूँ तो चेहरे बदल गए वक़्त के साथ,
किंतु बिम्ब रहे, हमेशा ही अर्वाचीन,
शब्द पहेली से कम नहीं है ये जीवन,
कटपिट के मध्य छुपा पुरातन नवीन,
आसां नहीं है, अपने हक़ूक़ को पाना,
हिस्से को ज़बरन लानी पड़ती है छीन,
हस्त रेखाओं की गणना अपनी जगह,
दुःख सुख के बीच एक रेखा है महीन,
ग्रह नक्षत्र खिलौने की तरह हैं घूम रहे,
नियति शिशु खेल रहा हो कर तल्लीन,
हर किसी को चाहिए सपनों के सौगात,
आँख खुलते ही सुबह रहे शब्द विहीन,
- - शांतनु सान्याल
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