25 जून, 2023

पुरातन देवालय

दूर तक तैरतीं काई, जलोच्छ्वास लेते कुछ
कमलिनी, जब देह बने जलासय,
तट के कचनार, वन्य कुसुम, हरित तृण
बांस वन तक चाहें जल समाधि,
मन्त्र मुग्ध मृग दल पिपासा लिए सहमें
कुछ पल ठहरें, अंतर्मन सरीसर्प
न जाने कब हों जागृत और ग्रास हो जाएँ,
रहस्यमयी, स्थिर जलराशि गहन
अनंत, अंधकार थाह न जाने कोई, प्रवेश
सहज, सुगम मनोहर, निर्गमन द्वार
हों जैसे मायाविनी भ्रमित संसार
छायामय चिर धरातल, निःश्वास विहीन
तलछट समेटे महा दहन निशि दिन
प्रति पल अदृश्य अग्निशिखा प्रज्वलित,
भोर में उठतीं वाष्पीकृत वेदनाएं
पर्यटक खोजें निसर्ग सौन्दर्य, ह्रदय मध्य
गिरतें प्रति क्षण पुरातन देवालय।
--- शांतनु सान्याल  

8 टिप्‍पणियां:

  1. aapki sari post ek se badhkar ek hai.........bahut sundar .......badhai

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 26 जून 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!

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  3. हमेशा की तरह शानदार प्रस्तुति शान्तनु जी।🙏

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