06 फ़रवरी, 2023

अनुक्रम खेल - -

जीवन बिंब चिर चंचल है फिसल जाए -
उँगलियों के मध्य से हो कर, बूंद -
बूंद लम्हों में कहीं खोजता हूँ
मैं एक अदद अपना चेहरा,
बिखरे कांच के टुकड़ों
को जोड़ता हूँ बहोत
ही एहतियात
से, जल -
छवि
आख़िर छलक ही जाती है निन्यानवे पर
आ कर, फिर उसी अंक पर उतर आता
हूँ मैं, जहाँ से की थी आग़ाज़ ए
सफ़र, पुनः सीढ़ियों की तरफ़
बढ़ना चाहता है ये क्लांत
जीवन सरीसृपों के
सर्पिल रास्तों
से हो कर,
मुझे
रोक नहीं पाते कोई भी इस पुनः शुरुआत
से, बूंद, बूंद लम्हों में कहीं खोजता
हूँ मैं एक अदद अपना चेहरा,
बिखरे कांच के टुकड़ों
को जोड़ता हूँ बहोत
ही एहतियात
से।
- - शांतनु सान्याल
 

 
 

 







3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 7 फ़रवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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