18 फ़रवरी, 2023

शाम ए चिराग़ - -

अपने ही क़दमों की आहट पा रहा हूँ मैं,
कहने को ख़ुद से बहुत दूर जा रहा हूँ मैं,

धुंध में, तसव्वुर ए आबशार है ज़िन्दगी,
तिश्नगी को ख़्वाबों से, बहला रहा हूँ मैं,

नक़ाबपोशों के बज़्म में आईना क्या करे,
अपने अक्स को बारहा समझा रहा हूँ मैं,

अंदरूनी आदमी, भला कौन देखे है यहाँ,
ज़मीर के ज़िद्दिपन को, सहला रहा हूँ मैं,

अंदर महल तो बसता है इक वीरानापन,
सच दबा कर, झूठ को दिखला रहा हूँ मैं,

समय के अल्बम में, सभी चेहरे हैं फीके,
गोशा ए दिल में फिर दीये जला रहा हूँ मैं,
* *
- - शांतनु सान्याल

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 20 फरवरी 2023 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. समय के अल्बम में, सभी चेहरे हैं फीके,
    गोशा ए दिल में फिर दीये जला रहा हूँ मैं,

    बहुत सुंदर,सादर नमन 🙏

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  3. समय के अल्बम में, सभी चेहरे हैं फीके,
    गोशा ए दिल में फिर दीये जला रहा हूँ मैं,////
    क्या बात है शांतनु जी | छन्दहीन की तरह आपकी गज़लें भी बहुत खूबसूरत होती हैं |एक मीठी रचना के लिए हार्दिक बधाई |

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  4. समय के अल्बम में, सभी चेहरे हैं फीके,
    गोशा ए दिल में फिर दीये जला रहा हूँ मैं,
    वाह!!!
    बहुत सुंदर गजल।

    जवाब देंहटाएं

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