कहने को ख़ुद से बहुत दूर जा रहा हूँ मैं,
धुंध में, तसव्वुर ए आबशार है ज़िन्दगी,
तिश्नगी को ख़्वाबों से, बहला रहा हूँ मैं,
नक़ाबपोशों के बज़्म में आईना क्या करे,
अपने अक्स को बारहा समझा रहा हूँ मैं,
अंदरूनी आदमी, भला कौन देखे है यहाँ,
ज़मीर के ज़िद्दिपन को, सहला रहा हूँ मैं,
अंदर महल तो बसता है इक वीरानापन,
सच दबा कर, झूठ को दिखला रहा हूँ मैं,
समय के अल्बम में, सभी चेहरे हैं फीके,
गोशा ए दिल में फिर दीये जला रहा हूँ मैं,
* *
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना सोमवार 20 फरवरी 2023 को
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आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंसमय के अल्बम में, सभी चेहरे हैं फीके,
जवाब देंहटाएंगोशा ए दिल में फिर दीये जला रहा हूँ मैं,
बहुत सुंदर,सादर नमन 🙏
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंसमय के अल्बम में, सभी चेहरे हैं फीके,
जवाब देंहटाएंगोशा ए दिल में फिर दीये जला रहा हूँ मैं,////
क्या बात है शांतनु जी | छन्दहीन की तरह आपकी गज़लें भी बहुत खूबसूरत होती हैं |एक मीठी रचना के लिए हार्दिक बधाई |
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंसमय के अल्बम में, सभी चेहरे हैं फीके,
जवाब देंहटाएंगोशा ए दिल में फिर दीये जला रहा हूँ मैं,
वाह!!!
बहुत सुंदर गजल।
आपका हृदय तल से आभार ।
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