कभी अक्स, तो कभी सूखा शज़र देखता हूँ,
शीशे के उस पार, इक उजड़ा शहर देखता हूँ,
बहोत दिनों के बाद वो आए हैं मुलाक़ात को,
कभी उनको कभी बेरंग अपना घर देखता हूँ,
इस दर पे नहीं होती, चाहनेवालों की आमद,
हद ए नज़र, इक सुनसान सा डगर देखता हूँ,
वक़्त का तक़ाज़ा है ज़र्द पत्तों का अफ़साना,
फिर भी, ख़्वाब ए ज़िन्दगी अक्सर देखता हूँ,
आसान नहीं चाहतों को, नज़र अंदाज़ करना,
मुस्कुराते हुए बच्चों को, एक नज़र देखता हूँ,
उम्र तो गुज़री हैं सबारा खंजरी के दरमियान,
क़तरा ए न'दा में, अक्स ए समंदर देखता हूँ,
उजालों के हमराह, उड़ गईं रंगीन तितलियाँ,
इक बेकरां अंधेरा अपने बहुत अंदर देखता हूँ,
वक़्त उतार देता है चेहरे से, फ़रेब के मुखौटे,
शफ़ाफ़ लिबास में, भरम के अस्तर देखता हूँ,
न जाने किस ख़ुदा के हैं, सभी पागल पैरोकार,
अमृत के प्याले में, नफ़रत का ज़हर देखता हूँ,
* *
- - शांतनु सान्याल
अर्थ :
शज़र - पेड़
सबारा खंजरी - नागफणी
क़तरा ए न'दा - ओस की बूँद
बेकरां - असीम
शफ़ाफ़ - पारदर्शी
पैरोकार - अनुयायी
05 फ़रवरी, 2023
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सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवक़्त का तक़ाज़ा है ज़र्द पत्तों का अफ़साना,
फिर भी, ख़्वाब ए ज़िन्दगी अक्सर देखता हूँ,
... ज़िंदगी के अफसाने कहती बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
दिल की गहराइयों से शुक्रिया।
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल
साथ ही उर्दू शब्दों के हिंदी अर्थ देने के लिए शुक्रिया।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया।
हटाएंसुन्दर सटीक सार्थक ग़ज़ल, श्ब्दार्थ के साथ|
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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