05 फ़रवरी, 2023
मुलाक़ात - -
मिलता हूँ मैं रोज़ मेरी ही हम ज़ात से
है उन्हें ग़र गिला, तो रहे इस बात से
तंग है ज़िन्दगी इस बेवजह बरसात से,
वो निकलते हैं, दबे क़दम इस तरह -
कांपती हों साँसें, रूह के ज्यों निज़ात से,
इस गली ने कभी उजाला नहीं देखा -
चाँद है बेख़बर दर्दो अलम जज़्बात से,
मुस्कुराता तो हूँ मैं छलकती आँखों से
हासिल क्या आख़िर इस अँधेरी रात से,
खोजते हैं क्यूँ लोग,चेहरे पे राहतें, उन्हें
फ़र्क नहीं पड़ता जीने मरने की बात से,
इन मक़बरों में दिए जलाएं, कि बुझाएं
हैं गहरी नींद में,जुदा सभी तासिरात से,
कह दो ये चीखें हैं किसी और शै की -
किसे है फ़िक्र आख़िर मजरुहे हालात से,
-- शांतनु सान्याल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
बहुत सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार महोदय ।
हटाएं