गहन से गहनतम तक, डूब कर उभरने को जी चाहे,
गंध कोष की तरह दूर दूर तक बिखरने को जी चाहे,
असंख्य हिस्सों में, वितरित होता रहा हूँ तमाम उम्र,
बिंब धुंधला सही ताहम ज़रा सा संवरने को जी चाहे,
जाने कहाँ है जाना किसे ज्ञात है गंतव्य का शेष बिंदु,
ओस की बूंदों की तरह पलकों पर ठहरने को जी चाहे,
हर ओर है, नितांत नीरवता, गहन निद्रित हैं पुरवासी,
न टूटे स्वप्न किसी का, निःशब्द गुजरने को जी चाहे,
अद्भुत सा लगे, लोगों का देख कर भी अनजान बनना,
एक शब्द भी कहा न जाए जब कुछ कहने को जी चाहे,
सघन कुहासे में हर किसी को है एक दिन विलीन होना,
फूलों भरी घाटियों में पुनः एक बार उतरने को जी चाहे,
* *
- - शांतनु सान्याल
27 फ़रवरी, 2023
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आपका हृदय तल से आभार ।
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