04 फ़रवरी, 2023

उँगलियों के निशान - -

हर एक एहसास को लिपिबद्ध नहीं किया
जा सकता, न जाने कितने अपूर्ण
प्रेम के दस्तक, दरवाज़े पर
छोड़ जाते हैं कांपते
उँगलियों के
निशान,
पुनः
जीवित हो जाते हैं विस्मृत स्मृतियों के -
जीवाश्म, टहनियों में उभर आती
हैं नन्ही पत्तियां, हवाओं में
इक अजीब सी होती है
मृदु सरसराहट,
ज़िन्दगी
फिर
अंध वृत्त से निकल कर छूना चाहती है
उजाले की आहट, सभी आवाज़ों को
को सीने से आबद्ध करना नहीं
आसान, सद्य खिले फूल
की पंखुड़ियों में बिखरे
पड़े रहते हैं नभाश्रु  
के कुछ लवणीय
निशान ।
* *
- - शांतनु सान्याल

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०५ -०२-२०२३) को 'न जाने कितने अपूर्ण प्रेम के दस्तक'(चर्चा-अंक-४६३९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. दिल की गहराइयों से शुक्रिया।

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    1. दिल की गहराइयों से शुक्रिया।

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  3. उत्तर
    1. दिल की गहराइयों से शुक्रिया।

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  4. नभाश्रु के कुछ लवणीय निशान!
    अद्भुत उपमा! साधुवाद!
    मेरी आवाज में संगीतबद्ध मेरी रचना 'चंदा रे शीतल रहना' को दिए गए लिंक पर सुनें और वहीं पर अपने विचार भी लिखें. सादर आभार 🌹❗️--ब्रजेन्द्र नाथ

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    1. दिल की गहराइयों से शुक्रिया।

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