प्रणय बंध के अतिरिक्त, बाध्यता हैं अंतहीन,
कुछ दृष्टव्य अति स्पष्ट, कुछ हैं बहुत महीन,
दूरत्व मिटा देता है समस्त अनुरागी - अनुबंध,
जब तक परस्पर के नज़दीक, हर पल है रंगीन,
अरण्य नदी बहती जाए ऋतु अनुरूप बदले तट,
कभी छलके किनारे, कभी गहनता भाव विहीन,
इस क्षण में आलिंगनबद्ध दूजे पल देह विलोपन,
सेमल कपास उड़ जाए सुदूर हवाओं पर आसीन,
प्रेम शिखा अदृश्य हो कर भी, निरंतर प्रज्वलित,
गुप्त दीप सम कोई जलता है, हृदय अभ्यंतरीण,
अपरिभाषित होते हैं अनुराग के कुछ भंवर तरंग,
डूबना उभरना अनवरत इस की गहराई अंतहीन।
* *
- - शांतनु सान्याल
14 फ़रवरी, 2023
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 फरवरी 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंइस क्षण में आलिंगनबद्ध दूजे पल देह विलोपन,
जवाब देंहटाएंसेमल कपास उड़ जाए सुदूर हवाओं पर आसीन,
दूजे पल देह विलोपन...
वाकई अपरिभाषित होता। है अनुराग।
बहुत ही सुंदर अप्रतिम सृजन।
आपका हृदय तल से आभार ।
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