अगोचर सत्य की आत्मीयता ने
उसे अंततः किंवदंती बना दिया, वो पथिक जो
था जन अरण्य
में बहुत
एकाकी, लेकिन सतत गतिशील,
पगडंडियों से हो कर पार्वत्य
श्रृंखलाओं तक भटके
उसके क़दम,
आत्म -
संधान ने उसे आख़िर दिव्योक्ति
बना दिया, अग्नि स्नान ही
था उसका जीवन,
निरंतर स्व
आकलन,
अनंत दहन ने उसे आज जीवंत -
अखंड ज्योति बना दिया,
अगोचर सत्य की
आत्मीयता ने
उसे
अंततः किंवदंती बना दिया - - - -
* *
- शांतनु सान्याल
उसे अंततः किंवदंती बना दिया, वो पथिक जो
था जन अरण्य
में बहुत
एकाकी, लेकिन सतत गतिशील,
पगडंडियों से हो कर पार्वत्य
श्रृंखलाओं तक भटके
उसके क़दम,
आत्म -
संधान ने उसे आख़िर दिव्योक्ति
बना दिया, अग्नि स्नान ही
था उसका जीवन,
निरंतर स्व
आकलन,
अनंत दहन ने उसे आज जीवंत -
अखंड ज्योति बना दिया,
अगोचर सत्य की
आत्मीयता ने
उसे
अंततः किंवदंती बना दिया - - - -
* *
- शांतनु सान्याल
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