चिलमन पार की ख़ुश्बू, आ रही है रूह के पास,
दिल ए तहरीर पे, तिलस्मी उन्वान है किस का,
नज़्म या ग़ज़ल, या कोई मबहम भरा एहसास,
मेहराब ए जुनूं की ओट से, यूँ झांकता है कौन,
चश्म ए आहू को है गोया सदियों की इक प्यास,
शहर है उसका ही दीवाना, हर शू उसी का ज़िक्र,
हाकिम का ख़ुदा हाफ़िज़ उठ गए सभी इजलास,
चाँदनी की तरह तहे दिल में उतरता है जां नशीं,
जिस्म ओ जां को कहाँ रहता है, होश ओ हवास,
इक कांच का खिलौना है ये आलम ए मुहोब्बत,
टूटने पर भी होती है पुनर्जनम में जुड़ने की आस,
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- - शांतनु सान्याल
अर्थ : तजस्सुस - कौतुहल, तिलस्मी उन्वान -
मायावी शीर्षक, मबहम - रहस्यमय, मेहराब ए जुनूं - आवेग का झालर
इजलास - अधिवेशन, चिलमन - पर्दा, चश्म ए आहू - मृग नयन
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 फ़रवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....
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आपका हृदय तल से आभार ।
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