उम्र की ढलान पर दिल का आलम गुलज़ार सा है,
टूटे हुए आईने को न जाने किस का इंतज़ार सा है,
क़ाब ए क़दीम को इक नया शक्ल ओ रंग चाहिए,
हदे नज़र पे मुंतज़िर मुस्कुराता, कोई बहार सा है,
सभी जरियां आब को बहना है ढलानों की जानिब,
कौन है मजनूं, जो मुझ से मिलने को तैयार सा है,
अपनों की कलई खुल जाती है ज़र्द पत्तों के गिरते,
यूँ तो टहनियों को, कुछ अफ़सोस कुछ प्यार सा है,
वक़्त के संग धीरे धीरे, हम आहंगी हो जाते हैं कुंद,
भरम कहता है लब ए आशिक़ी पर कुछ धार सा है,
ख़्वाबों के टूटते ही, दूर तक वही आतिशी रास्ते हैं,
दस्त ए ख़ंजर वाला चेहरा, कुछ मेरे दिलदार सा है,
* *
- - शांतनु सान्याल
अर्थ :
क़ाब ए क़दीम - पुराना फ्रेम, कुंद - कुंठित
जरियां आब - जल प्रवाह, दस्त - हाथ
हम आहंगी - अपनापन, मुंतज़िर - प्रतीक्षारत
आलम - दुनिया
13 फ़रवरी, 2023
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 14 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका हृदय तल से आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-2-23} को "सिंहिनी के लाल"(चर्चा-अंक 4642) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आपका हृदय तल से आभार ।
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