न जाने कहाँ है वो सुबह ख़ुशगवार,
जिसे पाने की चाहत में उम्र
गुज़र गई, न जाने ये
कैसा है कोहराम,
फिर किसी
ने दी
है, भीड़ चीरकर दर्द भरी चीत्कार -
ये कैसा है जश्न तेरी महफ़िल
में मुदीर ए जमुरियत,
दर नज़दीक ए
क़िला,
गूंजती हैं दबे कुचलों की पुकार और
अब तलक है तू अनजान, कहीं
ये अनसुनापन न कर
जाए तुझे तबाह
हमेशा के
लिए
कि फिर उफ़क़ पे उभरने लगा है - -
तूफ़ान ए इन्क़लाब - -
* *
- शांतनु सान्याल
अर्थ
जमुरियत - लोकतंत्र
मुदीर - दिग्दर्शक
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
stormy moonlight
जिसे पाने की चाहत में उम्र
गुज़र गई, न जाने ये
कैसा है कोहराम,
फिर किसी
ने दी
है, भीड़ चीरकर दर्द भरी चीत्कार -
ये कैसा है जश्न तेरी महफ़िल
में मुदीर ए जमुरियत,
दर नज़दीक ए
क़िला,
गूंजती हैं दबे कुचलों की पुकार और
अब तलक है तू अनजान, कहीं
ये अनसुनापन न कर
जाए तुझे तबाह
हमेशा के
लिए
कि फिर उफ़क़ पे उभरने लगा है - -
तूफ़ान ए इन्क़लाब - -
* *
- शांतनु सान्याल
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