किसे ख़बर फिर मिलें न मिलें, जो
पल हैं, अपने दर मुक़ाबिल,
क्यूँ न जी लें उन पलों
में उम्र से लम्बी
ज़िन्दगी
अपनी, यूँ तो ख्वाहिशों का कोई -
इख़त्ताम नहीं, फिर भी
इन लम्हों में क्यूँ न
सजा लें अनदेखे
ख्वाबों के
दरीचे,
वो दर्द जो अश्क से मोती न बन
पाएं कभी ,उन्हें ज़मीं दोज़
करना है बेहतर, कोई
साथ नहीं चलता
उम्र भर के
लिए,
जो वस्त राह साथ छोड़ जाए उसे
वक़्त रहते भूल जाना ही है
अक़लमंदी !
* *
- शांतनु सान्याल
अर्थ -
इख़त्ताम - अंत
ज़मीं दोज़ - ज़मीं के निचे
वस्त - मध्य
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by nancy madina
पल हैं, अपने दर मुक़ाबिल,
क्यूँ न जी लें उन पलों
में उम्र से लम्बी
ज़िन्दगी
अपनी, यूँ तो ख्वाहिशों का कोई -
इख़त्ताम नहीं, फिर भी
इन लम्हों में क्यूँ न
सजा लें अनदेखे
ख्वाबों के
दरीचे,
वो दर्द जो अश्क से मोती न बन
पाएं कभी ,उन्हें ज़मीं दोज़
करना है बेहतर, कोई
साथ नहीं चलता
उम्र भर के
लिए,
जो वस्त राह साथ छोड़ जाए उसे
वक़्त रहते भूल जाना ही है
अक़लमंदी !
* *
- शांतनु सान्याल
अर्थ -
इख़त्ताम - अंत
ज़मीं दोज़ - ज़मीं के निचे
वस्त - मध्य
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