29 जनवरी, 2014

आँखों की ज़ुबां - -

बहोत कुछ कहने की चाह में कुछ 
भी न उनसे कहा गया, सिर्फ़ 
निगाहों में छुपाये दर्द - 
ए किताब, हम 
उन्हें 
देखते रहे, ख़ुदा जाने, वो आँखों की 
ज़ुबां जानते भी हैं या नहीं, 
लोग कहते हैं इश्क़ 
में, दिल की 
बात
ख़ुश्बुओं में ढल जाती है, शायद - -
उन्हें भीगे अहसास ने छुआ 
हो कहीं, कि लौटतीं 
ख़ामोश सदाओं
को हर्फ़ 
ए ज़िन्दगी मिले, नज़रअंदाज़ बुतों 
को जज़्बात ए बंदगी मिले - - 

* * 
-  शांतनु सान्याल 


http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by ChristineTidwell

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