इक बेइन्तहा गहराई सामने, या
उसका पुरअसरार निगाहों
से देखना, तमाम रात
ज़िन्दगी, डूबती
उभरती
रही,
किसी शिकस्ता हाल कश्ती की
तरह, मौज ए समंदर या
अंधेरों के साए, किसी
ने भी न की हमसे
सुलहनामे
की बात,
हर
कोई था तमाशबीन, संग ए - - -
साहिल की तरह, रात
भर गिरती रही
शबनम या
क़तरा
ए आतिश, हमें कुछ भी अहसास
नहीं, किसी के इश्क़ में हम
यूँ ही लम्हा लम्हा
जलते बुझते
रहे - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
moonlight beauty
उसका पुरअसरार निगाहों
से देखना, तमाम रात
ज़िन्दगी, डूबती
उभरती
रही,
किसी शिकस्ता हाल कश्ती की
तरह, मौज ए समंदर या
अंधेरों के साए, किसी
ने भी न की हमसे
सुलहनामे
की बात,
हर
कोई था तमाशबीन, संग ए - - -
साहिल की तरह, रात
भर गिरती रही
शबनम या
क़तरा
ए आतिश, हमें कुछ भी अहसास
नहीं, किसी के इश्क़ में हम
यूँ ही लम्हा लम्हा
जलते बुझते
रहे - -
* *
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