14 जनवरी, 2014

ज़रा सी चाहत - -

बेज़ार जिस्म, रूह भी बोझिल, इस  
शब ए मजरूह में ऐ दोस्त, 
कोई और दिल दुखाने 
की बात न कर, 
इन ज़ख्मों 
का  क्या
वक़्त के साथ सभी भर जाएंगे,  न 
ही ख्वाहिश उम्र ए दराज़ की, 
न है कोई चाहत रंगीं 
बहिश्त की हमको,
ग़र हो सके 
तो दे 
हमें थोड़ी सी जगह, अपनी पलकों 
के साए में कहीं, कि उम्र भर 
भटकी है ज़िन्दगी, यूँ 
ही तपते सहरा 
में, इक 
सायादार शजर के लिए, इक तेरी - -
शफ़ाफ़ मुस्कराहट है काफ़ी 
तस्कीन ए दर्द के 
असर के 
लिए.

* * 
- शांतनु सान्याल 
अर्थ 
शब ए मजरूह - घायल रात 
उम्र ए दराज़ - लम्बी उम्र 
बहिश्त - स्वर्ग 
शजर - पेड़ 
शफ़ाफ़ - स्पष्ट 
तस्कीन - राहत 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
painting by Delilah Smith

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