01 जनवरी, 2014

वो शख्स - -

वो शख्स रोज़ मिलता है मुझ से 
इक फ़ासले के साथ, कुछ 
न कहते हुए भी कह 
जाता है बहोत 
कुछ, वो 
देखता है, मुझे बड़े ही पुर सुकून 
अंदाज़ से, मुस्कुराता है 
दो पल के लिए,
फिर कहता 
है सब 
ठीक तो है, मेरे सर हिलाने के - 
साथ बढ़ जाते हैं उसके 
क़दम, धुंधलके 
में बहोत 
दूर, 
हर बार मैं चाहता हूँ उसका नाम 
पूछना, हर दफ़ा वो थमा 
जाता है, मेरे हाथों 
इक गुमनाम 
लिफ़ाफ़ा,
फूलों 
की महक वाला, उस मबहम - -
ख़त पढ़ते ही मुझे याद 
आते हैं क़तआत 
ए ख्वाब,
फिर 
फ़र्श पे बिखरे हुए कांच के टुकड़े 
उठाता हूँ मैं, एक एक, बड़े 
ही अहतियात से,
कि फिर न 
कहीं 
चुभे उँगलियों में दोबारा नुकीले - 
गोशा ए इश्क़ अनजाने !

* * 
- शांतनु सान्याल 
 http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
carnation watercolor by lisabelle

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