न दो आवाज़, कि हम भूल चुके हैं
अपना नाम तक किसी की
चाह में, न जाने कैसी
है ये सर्द आग,
न जले
मुक्कमल, न बुझे राख बन कर !
इक दहन नादीद कोई, जले
है दिल की गहराइयों
में, पहलु में
कोई -
नहीं, फिर भी कोई चलता है जैसे
मेरी परछाइयों में, दूर तक
फैले हैं अंधेरों के साए,
इक वीरानगी सी
है हर सिम्त,
फिर भी
न जाने है क्यूँ बेक़रार सा मेरा - -
दिल किसी की राह में,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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अपना नाम तक किसी की
चाह में, न जाने कैसी
है ये सर्द आग,
न जले
मुक्कमल, न बुझे राख बन कर !
इक दहन नादीद कोई, जले
है दिल की गहराइयों
में, पहलु में
कोई -
नहीं, फिर भी कोई चलता है जैसे
मेरी परछाइयों में, दूर तक
फैले हैं अंधेरों के साए,
इक वीरानगी सी
है हर सिम्त,
फिर भी
न जाने है क्यूँ बेक़रार सा मेरा - -
दिल किसी की राह में,
* *
- शांतनु सान्याल
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