30 जनवरी, 2014

ख़ुद से बेख़बर - -

दूर दूर तक है अहसास तनहाई, 
गुलों के रंग ओ अतर भी 
हैं कुछ फीके फीके 
से, बेरंग सी 
हो चली 
है ये 
ज़िन्दगी तेरे जाने के बाद, हर 
चीज़ है मौजूद अपनी 
जगह, हमेशा की 
तरह, फिर 
खिले 
हैं अहाते में कहीं गुल यास, न 
जाने क्या हुआ, दिल है 
है बहोत उदास, 
तेरे जाने के 
बाद,
कि अब हमें नहीं छूती कोई भी  
ख़ुश्बू पहले की तरह, 
लम्हा लम्हा हम 
खो चले हैं
किसी 
और ही जहां में ख़ुद से बेख़बर।

* * 
- शांतनु सान्याल  

 गुल यास - चमेली 

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बेइंतहा मुहोब्बत - -

इस क़दर बेइंतहा तेरी मुहोब्बत, 
न कर जाए मुझ से जुदा 
मेरी हस्ती, न भूल 
जाऊं मैं कहीं, 
तमाम 
आलम ओ वजूद तेरी निगाह के 
सामने, न बना मुझको 
यूँ ज़र्रे से आसमां,
कि बिखरने 
के बाद न 
ढूंढ़ 
पाऊँ कहीं नाम ओ निशां अपना,
रहने दे मुझे यूँ ही ग़ैर महसूस, 
ज़ेर साया तेरी आँखों में 
कहीं, कि ग़र टूट 
जाऊं कभी 
तो - - 
मिल जाए मुझे पनाह, कूचा ए -
दिल में तेरे कहीं न कहीं !

* * 
- शांतनु सान्याल  - 

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arrt by loren elizabeth conley

29 जनवरी, 2014

आँखों की ज़ुबां - -

बहोत कुछ कहने की चाह में कुछ 
भी न उनसे कहा गया, सिर्फ़ 
निगाहों में छुपाये दर्द - 
ए किताब, हम 
उन्हें 
देखते रहे, ख़ुदा जाने, वो आँखों की 
ज़ुबां जानते भी हैं या नहीं, 
लोग कहते हैं इश्क़ 
में, दिल की 
बात
ख़ुश्बुओं में ढल जाती है, शायद - -
उन्हें भीगे अहसास ने छुआ 
हो कहीं, कि लौटतीं 
ख़ामोश सदाओं
को हर्फ़ 
ए ज़िन्दगी मिले, नज़रअंदाज़ बुतों 
को जज़्बात ए बंदगी मिले - - 

* * 
-  शांतनु सान्याल 


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art by ChristineTidwell

28 जनवरी, 2014

अभी तक मेरी साँसों में है - -

कुछ दर्द ख़ुसूसी, न पूछ ऐ हमनशीं, -
बाहिजाब रहने दे, ये दिल की 
ख़ूबसूरती, न कर 
बेनक़ाब -
यूँ सरे 
महफ़िल, बस अभी अभी तो ज़िन्दगी
ने सीखा है मुस्कुराना,अभी अभी, 
तेरी निगाहों में हमने देखी 
है इक उभरती ख़ुशी !
कुछ और बढ़े 
दिल की 
कशिश, कुछ दूर तो चले ख़ुमार ए -
नज़दीकी, अभी अभी तो जले 
हैं शाम ए चिराग़, हाले 
दिल न पूछ मुझसे 
से, कि अभी 
ये रात 
है बहोत बाक़ी, अभी तक मेरी साँसों 
में है किसी की याद बाक़ी !

* * 
- शांतनु सान्याल

अर्थ - 
ख़ुसूसी - व्यक्तिगत 
बाहिजाब - परदे के साथ 
ख़ुमार - नशा 
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25 जनवरी, 2014

तूफ़ान ए इन्क़लाब - -

न जाने कहाँ है वो सुबह ख़ुशगवार, 
जिसे पाने की चाहत में उम्र 
गुज़र गई, न जाने ये 
कैसा है कोहराम, 
फिर किसी 
ने दी 
है, भीड़ चीरकर दर्द भरी चीत्कार -
ये कैसा है जश्न तेरी महफ़िल 
में मुदीर ए जमुरियत,
दर नज़दीक ए 
क़िला,
गूंजती हैं दबे कुचलों की पुकार और 
अब तलक है तू अनजान, कहीं 
ये अनसुनापन न कर 
जाए तुझे तबाह 
हमेशा के 
लिए 
कि फिर उफ़क़ पे उभरने लगा है - -
तूफ़ान ए इन्क़लाब - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
अर्थ 
जमुरियत - लोकतंत्र 
मुदीर - दिग्दर्शक 
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stormy moonlight 

तलाश - -

कहाँ मिलती है हर चीज़, ज़िन्दगी में 
मुताबिक़ दिल के, कुछ न कुछ 
समझौता है, ज़रूरी जीने 
के लिए, न रख 
सीने में 
तलब, यूँ तस्सवुर से ज़ियादा, कि - -
टूटने के बाद, न चुभे कहीं 
ख्वाबों के टुकड़े, 
तमाम उम्र 
जिसे 
तलाश की हमने बुतों की भीड़ में, वो 
शख्स था, न जाने कब से मेरे 
तहे दिल में पिन्हाँ, उस 
की निगाहों में है 
इक अजब 
सी - - 
चमक आजकल, शायद उसने देखा - -
है बेदाग़ आईना, इक मुद्दत के 
बाद - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by filomena booth

24 जनवरी, 2014

आस्मां का रास्ता - -

मेरी ज़ात है महज़, इक ख़ुश्बूदार 
हवा का झोंका, न बना मुझे 
महदूद शख्सियत, 
रहने दे मुझे 
यूँ ही  
साँसों में इक ख़ूबसूरत अहसास -
की तरह, मेरा वजूद है महज़,
इक बहता हुआ पहाड़ी 
झरना, न रोक 
मुझे, यूँ 
अपने हुस्न ए तिलिस्म में जकड़ 
के, बिखरने दे मुझे बंजर -
किनारों में खुल कर,
मेरे जज़्बात 
हैं, रूह 
ख़ानाबदोश, न कर इन्हें क़ैद - - - 
अपनी पुरअसरार आँखों 
के क़फ़स में, कहीं 
ये मेरी  
ज़िन्दगी, न भूल जाए आस्मां का 
रास्ता - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

अर्थ -
 ज़ात - स्वभाव 
महदूद - सिमित 
क़फ़स - पिंजरा 
 पुरअसरार - राज़ भरे 
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forget-me-not, by deborah-schuster

23 जनवरी, 2014

किसी की राह में - -

न दो आवाज़, कि हम भूल चुके हैं
अपना नाम तक किसी की
चाह में, न जाने कैसी
है ये सर्द आग,
न जले
मुक्कमल, न बुझे राख बन कर !
इक दहन नादीद कोई, जले
है दिल की गहराइयों
में, पहलु में
कोई -
नहीं, फिर भी कोई चलता है जैसे
मेरी परछाइयों में, दूर तक
फैले हैं अंधेरों के साए,
इक वीरानगी सी
है हर सिम्त,
फिर भी
न जाने है क्यूँ बेक़रार सा मेरा - -
दिल किसी की राह में,

* *
- शांतनु सान्याल


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22 जनवरी, 2014

किसे ख़बर फिर मिलें न मिलें - -

किसे ख़बर फिर मिलें न मिलें, जो 
पल हैं, अपने दर मुक़ाबिल,
क्यूँ न जी लें उन पलों 
में उम्र से लम्बी 
ज़िन्दगी 
अपनी, यूँ तो ख्वाहिशों का कोई -
इख़त्ताम नहीं, फिर भी 
इन लम्हों में क्यूँ न 
सजा लें अनदेखे 
ख्वाबों के 
दरीचे,
वो दर्द जो अश्क से मोती न बन
पाएं कभी ,उन्हें ज़मीं दोज़ 
करना है बेहतर, कोई 
साथ नहीं चलता 
उम्र भर के 
लिए,
जो वस्त राह साथ छोड़ जाए उसे 
वक़्त रहते भूल जाना ही है 
अक़लमंदी ! 

* * 
- शांतनु सान्याल 
अर्थ - 
इख़त्ताम - अंत 
ज़मीं दोज़ - ज़मीं के निचे 
वस्त - मध्य 

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21 जनवरी, 2014

लम्हा लम्हा जलते बुझते रहे - -

इक बेइन्तहा गहराई सामने, या 
उसका पुरअसरार निगाहों 
से देखना, तमाम रात
ज़िन्दगी, डूबती 
उभरती 
रही, 
किसी शिकस्ता हाल कश्ती की 
तरह, मौज ए समंदर या 
अंधेरों के साए, किसी 
ने भी न की हमसे 
सुलहनामे 
की बात,
हर 
कोई था तमाशबीन, संग ए - - -
साहिल की तरह, रात 
भर गिरती रही 
शबनम या 
क़तरा 
ए आतिश, हमें कुछ भी अहसास 
नहीं, किसी के इश्क़ में हम 
यूँ ही लम्हा लम्हा 
जलते बुझते 
रहे - - 

* * 
- शांतनु सान्याल  
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moonlight beauty

20 जनवरी, 2014

आख़िर हमने भी सीख लिया - -

अँधेरों से उभरना, आख़िर हमने भी -
सीख लिया, वक़्त की है शायद 
अपनी कोई मजबूरी, बहने 
दो उसे अनजानी 
मंज़िलों की
तरफ़,
किनारों पे ठहरना, आख़िर हमने भी 
सीख लिया, ये सच है कोई नहीं 
रुकता घायल राही के लिए,
तजुर्बा ए ज़िन्दगी से, 
ज़ख़्मी क़दम 
चलना, 
आख़िर हमने भी सीख लिया, कोई -
नहीं होता दरअसल राज़दार ए 
अश्क, दिखाते हैं लोग 
यूँ ही नक़ाबपोश 
हमदर्दी !
चुनांचे दर्द में भी मुस्कुराना आख़िर -
हमने भी सीख लिया, अँधेरों से 
उभरना, आख़िर हमने 
भी सीख लिया।
* *
- शांतनु सान्याल 

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blooming smile

18 जनवरी, 2014

आजकल - -

मुलायम सा ख़ुमार है तारी जिस्म
ओ जां में आजकल, पहले तो
मौसम में कुछ ठहराव
सा देखा है हमने,
लेकिन कुछ
बदलाव
सा है आसमां में आजकल, इन -
रंग ओ नूर की लकीरों में
कहीं तेरी मुहोब्बत
करती है
तरसीम ए ज़िन्दगी, पहले तो न
थी इतनी ख़ूबसूरत ज़िन्दगी
अपनी, इक अजीब सी
हलचल है जज़्बात
ए कारवाँ में
आजकल,
मुलायम सा ख़ुमार है तारी जिस्म
ओ जां में आजकल - -

* *
- शांतनु सान्याल
अर्थ -
 तारी - छाया हुआ
तरसीम - चित्रांकन
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poetic beauty
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art by LorraineMae

17 जनवरी, 2014

गहराइयों तक - -

वो दरख़्त जिस पे लिखा था कभी 
हमने नाम अपना, वो फूल 
जो छुपाया था तुमने
दिल की धड़कनों
में कहीं,
वक़्त के साथ दरख़्त ग़र टूट जाए 
तो कोई ताज्जुब नहीं, पृष्ठों 
में दबे फूल की तरह
सूख जाए तो 
कुछ भी 
आश्चर्य नहीं, फिर भी कहाँ आसां 
है ख़ुश्बू ए इश्क़ का फ़ना 
होना, मुझे मालूम 
है, आज भी 
तुम्हारी 
धड़कनों में कहीं न कहीं बसती है 
मेरी रूह की छुअन बहोत 
गहराइयों तक !
* * 
- शांतनु सान्याल   
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purity of life

14 जनवरी, 2014

ज़रा सी चाहत - -

बेज़ार जिस्म, रूह भी बोझिल, इस  
शब ए मजरूह में ऐ दोस्त, 
कोई और दिल दुखाने 
की बात न कर, 
इन ज़ख्मों 
का  क्या
वक़्त के साथ सभी भर जाएंगे,  न 
ही ख्वाहिश उम्र ए दराज़ की, 
न है कोई चाहत रंगीं 
बहिश्त की हमको,
ग़र हो सके 
तो दे 
हमें थोड़ी सी जगह, अपनी पलकों 
के साए में कहीं, कि उम्र भर 
भटकी है ज़िन्दगी, यूँ 
ही तपते सहरा 
में, इक 
सायादार शजर के लिए, इक तेरी - -
शफ़ाफ़ मुस्कराहट है काफ़ी 
तस्कीन ए दर्द के 
असर के 
लिए.

* * 
- शांतनु सान्याल 
अर्थ 
शब ए मजरूह - घायल रात 
उम्र ए दराज़ - लम्बी उम्र 
बहिश्त - स्वर्ग 
शजर - पेड़ 
शफ़ाफ़ - स्पष्ट 
तस्कीन - राहत 
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painting by Delilah Smith

13 जनवरी, 2014

शाश्वत मानवीय अहसास - -

कुहासा भरे उस पथ पर कहीं, आज 
भी रुके रुके से हैं निःश्वास,
वाट जोहते हैं सजल 
नयन, न जाने 
मन में है 
किस 
के मिलने की आस, वो अदृश्य हो -
कर भी है कहीं शामिल गहन  
अंतरतम के बीच, कभी 
वो उभरे व्यथित 
चेहरों में -
मौन !
कह जाए जीवन सारांश, कभी वो 
भटके जन अरण्य में, ह्रदय 
में लिए मृग तृष्णा 
गंभीर, कभी 
ठहरे 
अनाम बूंद बनकर पथराई आँखों 
के तीर, निस्तब्ध प्रतिध्वनि 
हो कर भी वो कर जाए 
जीवन मंथन, ले 
जाए सुदूर 
कभी,
और कभी रहे यहीं आसपास, बन 
कर एक शाश्वत मानवीय 
अहसास - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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mist beauty

12 जनवरी, 2014

न तोड़ ये रंगीन वहम मेरा - -

उन बनफ़शी लम्हों का जादू और 
तेरी निगाहों में अक्स मेरा,
फिर धुंध भरी राहों में 
खो जाने को दिल 
चाहता है,
कोई 
ख़ुश्बू जो भर जाए साँसों में इक -
अहसास ए ताज़गी, ज़िन्दगी 
फिर लगे बामानी ओ 
ख़ूबसूरत, फिर 
तेरी बज़्म 
ए गुल 
में जाने को दिल चाहता है, ख्वाब 
ही सही न तोड़ ये रंगीन वहम 
मेरा, फिर ख़ुद से निकल 
तेरे वजूद में दाख़िल 
होने को दिल 
चाहता 
है - -

* * 
- शांतनु सान्याल
बनफ़शी - बैगनी रंग   

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blue beauty 1

10 जनवरी, 2014

सुबह की नरम धूप - -

न रोक, ऐ दरख्त बुलंद सुबह की नरम 
धूप, कुछ टुकड़े ही सही बाँट ले 
मेरे शिकस्ता दहलीज़ 
के साथ, भीगे 
ख्वाबों 
को इक मुश्त अहसास ए ज़िन्दगी तो 
मिले, तेरी टहनियों में खिलें 
मौसमी फूल या हों 
फलों से झुके 
भरपूर !
ग़र न मिले ख़ुशी दर ज़ेर साया, ऐसी -
बुलंदी से फ़ायदा क्या, न भूल कि 
इक चिंगारी, झरे पत्तों के 
बीच कर जाए लंका 
दहन, लम्हों 
में न 
हो जाए कहीं तबाह, ये सब्ज़ सल्तनत
तेरी - - 

* * 
- शांतनु सान्याल  


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multi panel art

09 जनवरी, 2014

ख़ालिस सच - -

ये वो सरज़मीन ए इश्क़ है जहाँ -
कोई फ़र्क़ नहीं बादशाह ओ
फ़क़ीर में, मुझे हासिल
है दुनिया की वो
तमाम बेश
क़ीमत
ख़ुशी, उसकी इक मुहोब्बत भरी  
नज़र में, अब क्या रखा है
सितारा शनास, इस
हथेली के उलझी
लकीर में,
न दिखाओ मुझे फ़लसफ़ा ए - - -
आईना, उसके आगे हर
चीज़ है बेमानी !
वो इक
ख़ालिस सच है सारे आलमगीर -
में, ये वो सरज़मीन ए
इश्क़ है जहाँ कोई
फ़र्क़ नहीं
बादशाह ओ फ़क़ीर में - - - - - -

* *
- शांतनु सान्याल

सितारा शनास - - ज्योतिषी
 फ़लसफ़ा - दर्शन
ख़ालिस - विशुद्ध
आलमगीर - सार्वभौम

08 जनवरी, 2014

सिमटते दायरे - -

अपने अपने दायरे में सिमटते गए 
वो सभी नाम निहाद अज़ीज़,
जब ज़िन्दगी में घिरी 
यूँ तीरगी ग़ैर -
मुंतज़िर,
बहोत क़रीब हो कर भी थे वो सभी 
बहोत नाशनास, हर शख्स 
मांगें है मुझसे मेरी 
मौजूदगी का 
निशां, 
अब किस किस को दिखाएँ ज़ख्म 
दिल अपना, कि हमने ख़ुद 
ही छुपा ली वजूद दर 
साया, देखते 
रहे हम 
अपनी निगाहों से, मानिंद शमा यूँ 
ख़ुद का ख़ाक होना, चलो इसी 
बहाने तेरी महफ़िल में 
उतर आई है नूर 
कहकशाँ !

* * 
- शांतनु सान्याल 
अर्थ  -
नाम निहाद अज़ीज़ - तथा कथित मित्र 
तीरगी ग़ैर - मुंतज़िर - अनचाहा अँधेरा 
कहकशाँ - आकाशगंगा 
नाशनास, - अजनबी 
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art by mary

07 जनवरी, 2014

उसने कहा -

अचानक ही उसने समेट लिया, रौशन 
शामियाना रात ढलने से पहले,
बहोत कुछ था मेरे दिल 
में मनजमद, लेकिन 
उसने कहा - 
ख़ुदा 
हाफ़िज़, दर्द ए दिल पिघलने से पहले, 
उसकी थीं मजबूरियां, या इक 
ख़ूबसूरत किनाराकशी,
उसने मुस्कुराते 
हुए कहा -
फिर 
मिलेंगे कभी, वो जा चुके थे दूर, तारीक 
दुनिया से मेरे, जिस्म से रूह 
निकलने से पहले !

* * 
- शांतनु सान्याल 
मनजमद - जमा हुआ 
तारीक - अँधेरा 
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feelings 3

मेरे भीतर - -

मेरे भीतर कोई दहन ख्वाबीदा, है 
चाहे होना आतिशफ़िशाँ,
रोकती हैं क्यूँ तेरी 
निगाह पुरनम
मुझे यूँ 
बारहा, कि इस चाहत में न हो - -
जाएँ कहीं अपने आप जल 
के ख़ाक सारे अरमाँ,
कभी तो तू खुल 
के आए
बाहर, पर्दा ए राज़ से ऐ हमनफ़स,
कभी तो मेरी ज़िन्दगी को 
मिले, निजात ए इश्क़ - 
पिन्हाँ ! 
* * 
- शांतनु सान्याल  
 पिन्हाँ - छुपी हुई 
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art by roger whitlock 2
میرے اندر 
میرے اندر کوئی دہن خوابیدہ ، ہے
چاہے ہونا آتشفشاں 
روکتی ہیں کیوں تیری
نگاہ پرنم
مجھے یوں
بارہا، کہ اس چاہت میں نہ ہو -
جائیں کہیں اپنے جَل
کے خاک سارے ارماں. 
کبھی تو تو کھل
کے آئے
باہر، پردہ اے راز سے اے همنفس،
کبھی تو میری زندگی کو
ملے، نجات اے عشق -
پنہاں !
**
 شانتانو  سانیال

پنہاں  - پوشیدہ

05 जनवरी, 2014

जानबूझ कर - -

जानबूझ कर हमने उठाई थी जाम 
ए सम, इसमें क़सूर किसी 
का नहीं, अब जो भी 
हो हासिल, हम 
ने तो तेरा 
इश्क़ 
हलक़ से नीचे उतार लिया, अब -
दिल है मेरा मुख़ालिफ़ दर्द,
हर ज़ख्म सहने को 
तैयार, ये तुझ 
पे है अब 
मन्हसर, कि कौन सी सज़ा होगी 
मुनासिब इस से बढ़ कर, 
हमने यूँ ज़िन्दगी 
अपनी, तेरी 
जानिब,
बरा ए फ़िदाकारी जानबूझ कर -
सामने रख दिया !

* * 
- शांतनु सान्याल  

 जाम ए सम - विष का प्याला
 मन्हसर - निर्भर 
बरा ए फ़िदाकारी - क़ुर्बानी के लिए 
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abstract moon

किसी की अनंत चाह में - -

वो गुम है मुद्दतों से, किसी की अनंत 
चाह में, ख़ुद से जुदा, सुधबुध 
भूलाए, और कोई बैठा 
है, ज़माना हुआ 
आँखें 
बिछाए, सिर्फ़ उसकी राह में, इक -
अजीब सा है अंतर्विरोध, जल 
रहें है ज़मीं ओ आसमां,
फिर भी ज़िन्दगी 
है महफ़ूज़ 
कहीं 
न कहीं उसकी पनाह में, वो ज़ाहिर 
हो कर भी है, मेरे दिल में छुपा 
हुआ, इक बेनज़ीर इश्क़ 
है वो, कि मिलती 
है ख़ुशी, दर्द 
भरे 
आह में, न पूछे कोई इस रूह की - -
आवारगी, चैन मिलता है इसे
सिर्फ़, जिस्म ओ जां 
के तबाह में !

* * 
- शांतनु सान्याल  

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artist amith bhar India

04 जनवरी, 2014

नूर ए इश्क़ तेरा - -

ज़रा सा और उभरने दे मुझे, अभी 
तक हूँ मैं ग़म की परछाइयों 
में सहमा सहमा, कहीं 
नूर ए इश्क़ तेरा 
न कर जाए 
अचानक 
हैरां !
अभी अभी बेख़ुदी से ज़रा सम्भले 
हैं जिस्म ओ जां, कुछ देर 
और, यूँ ही रहने दे 
अब्र आलूद 
हाल ए 
दिल,
कि आँख खुलने से क़बल, कहीं न 
बिखर जाएँ पुरनम मोती,  
अभी तो रात है बहोत 
बाक़ी, न जा उठ 
कर यूँ पहलू 
से मेरे,
कि है ये उम्र भर की मिन्नतों का -
सिला - - 

* * 
- शांतनु सान्याल   

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lotus mood

03 जनवरी, 2014

बिखरने को आमादा - -

फिर आज हूँ मैं, बिखरने को आमादा,
कह भी जाओ, जो कुछ भी हो 
दिल में तुम्हारे, क़िस्तों 
में न जलाओ यूँ 
रूह ए शमा, 
ऐ दोस्त,
बाकामिल, फिर आज हूँ मैं, सुलगने -
को आमादा, न उतारो मुझे यूँ 
बारहा दर्द ए सलीब से, 
रहने दो मुझे यूँ ही 
अनदेखा 
अपनी आँखों में कहीं, उम्र भर के लिए, 
फिर आज हूँ मैं, बेक़रार तुम्हारे 
दिल में, यूँ ठहरने को 
आमादा - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 


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02 जनवरी, 2014

अलहदा कोई नहीं - -

तुम भी कहाँ हो अलहदा, वही जाने 
पहचाने चेहरों की तरह, मौक़ा 
मिलते ही दे जाओगे दग़ा,
रिश्तों के पैबंद से 
हूँ मैं अच्छी 
तरह 
बाख़बर, यहाँ कौन है पराया और -
कौन सगा, कहना है मुश्किल,
कहाँ तक तुम पँहुचे हो 
दिल के क़रीब,
कुछ और 
जान 
पहचान बढ़े, कुछ और हो तबादला 
ए ख्य़ाल, अभी अभी ज़माने 
से गया हूँ मैं ठगा, कुछ 
वक़्त और चाहिए
घाव भरने 
में ज़रा, 
न टूटे भरम मेरा, रहने दे कुछ देर
और यूँ ही ख्वाबों को हरा -
भरा !  

* * 
- शांतनु सान्याल   

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Painting by Robin Mead

01 जनवरी, 2014

वो शख्स - -

वो शख्स रोज़ मिलता है मुझ से 
इक फ़ासले के साथ, कुछ 
न कहते हुए भी कह 
जाता है बहोत 
कुछ, वो 
देखता है, मुझे बड़े ही पुर सुकून 
अंदाज़ से, मुस्कुराता है 
दो पल के लिए,
फिर कहता 
है सब 
ठीक तो है, मेरे सर हिलाने के - 
साथ बढ़ जाते हैं उसके 
क़दम, धुंधलके 
में बहोत 
दूर, 
हर बार मैं चाहता हूँ उसका नाम 
पूछना, हर दफ़ा वो थमा 
जाता है, मेरे हाथों 
इक गुमनाम 
लिफ़ाफ़ा,
फूलों 
की महक वाला, उस मबहम - -
ख़त पढ़ते ही मुझे याद 
आते हैं क़तआत 
ए ख्वाब,
फिर 
फ़र्श पे बिखरे हुए कांच के टुकड़े 
उठाता हूँ मैं, एक एक, बड़े 
ही अहतियात से,
कि फिर न 
कहीं 
चुभे उँगलियों में दोबारा नुकीले - 
गोशा ए इश्क़ अनजाने !

* * 
- शांतनु सान्याल 
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carnation watercolor by lisabelle

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