सभी मुख़ातिब चेहरे पहलू बदल गए,
बिखरे पड़े हैं कटानों में टूटे हुए
नाव, दूर तक पसरा हुआ
है लवणीय ख़ामोशी,
उतरते लहरों
के साथ
बह
चुका है किनारे का गांव, जिन्हें था - -
एहसास उजड़ने का, सुबह से
पहले वो सभी लोग न
जाने किस ओर
निकल गए,
सभी
मुख़ातिब चेहरे पहलू बदल गए। - -
बंजर ज़मीं पर उग आएंगे
एक दिन विस्तृत झाऊ
वन, प्रकृति अपने
भीतर रखती
है असंख्य
निर्मिति,
एक
अदृश्य ताना - बाना रचता है सदा
हरित प्रदेश, सब कुछ कभी
नहीं होता है यहाँ शेष,
अनगिनत दिन
आए और
आ कर
ढल
गए, सभी मुख़ातिब चेहरे पहलू - -
बदल गए।
* *
- - शांतनु सान्याल
26 अप्रैल, 2021
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बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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