30 अप्रैल, 2021

धुएं की लकीर - -

पथराई आँखों से ज़िन्दगी तकती है दूर
तक धुएं की लकीर, एक अंतहीन
नीरवता के आगे सभी हैं
मजबूर, क्या राजा
और क्या फ़क़ीर,
इस पार्थिव
देह को
ले कर कितना कुछ रहा हिंसा प्रतिहिंसा,
प्रेम घृणा, अपना पराया, ताउम्र कभी
साथ रहने की कल्पना, सांस
रुकते ही दूर तक बिखरा
पड़ा था अंतिम प्रहर
का मायावी सपना,
कौन किसे रोक
पाए, हर
एक पांव पड़े यहां ज़ंजीर, पथराई आँखों
से, ज़िन्दगी तकती है दूर तक धुएं
की लकीर - -

* *
- - शांतनु सान्याल

    

7 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य वचन,बेहतरीन सृजन सर,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
  2. सांस
    रुकते ही दूर तक बिखरा
    पड़ा था अंतिम प्रहर
    का मायावी सपना,
    सपना जब टूट जाता है तो ही ज्ञान होता है कि यह सपना था, पर तब तक तो सपनों को ही सच मानकर हम सुखी-दुखी होते रहते हैं

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past