17 अप्रैल, 2021

हवाओं के हमराह - -

सभी चेहरे हैं ऋतु अनुचर, बदल जाएंगे
अपना रास्ता हवाओं के अभिमुख,
फिर भी सांझ उतरेगी हमेशा की
तरह, और खींच जाएगी
तुम्हारी पलकों में
कहीं महीन सी
एक सुरमयी
रेखा,
जीवन बटोर लेगा अपने हिस्से का बचा
खुचा सुख, सभी चेहरे हैं ऋतु अनुचर,
बदल जाएंगे अपना रास्ता
हवाओं के अभिमुख।
एक ही जीवन
में नहीं है
संभव
सभी
प्रश्नों का समाधान, चिर दहन के मध्य
ही छुपे रहते हैं वृष्टि वन के अभियान,
सुख दुःख के स्रोत यूँ ही बहते
रहेंगे अनंतकाल तक,
कभी ख़त्म न
होगा, ये
धूप
छांव का लुकछुप, सभी चेहरे हैं ऋतु
अनुचर, बदल जाएंगे अपना
रास्ता हवाओं के
अभिमुख।

* *
- - शांतनु सान्याल
 

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुख दुःख के स्रोत यूँ ही बहते
    रहेंगे अनंतकाल तक,
    कभी ख़त्म न
    होगा, ये
    धूप
    छांव का लुकछुप, बेहतरीन सृजन 👌👌

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-04-2021) को चर्चा मंच   "ककड़ी खाने को करता मन"  (चर्चा अंक-4040)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
    --

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  3. एक ही जीवन में नहीं है संभव सभी प्रश्नों का समाधान। बहुत अच्छी अभिव्यक्ति।

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